Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 907
________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.४.उ.१-४मू.१ देवसम्बन्धिविमानादिस्वरूपनिरूपणम् ८९३ टीका-तृतीयशतके देवसम्बन्धिविकुर्वणादिवक्तव्यता निरूपिता, चतुर्थ शतकेऽपि देवसम्बन्धिवक्तव्यतैव निरूपयिष्यते तत्र उद्देशकार्थसंग्रहो गाथया क्रियते-'गाहा-चत्तारि विमाणेहिं' इत्यादि । 'चउत्थसए' चतुर्थशतके 'चत्तारि' चत्वारः उद्देशाः 'विमाणेहिं' विमानैः 'होति' भवन्ति सम्पद्यन्ते 'चत्तारिय' चत्वारश्च उद्देशाः ‘रायहाणीहिं' राजधानीभिः एवम् अष्टौ 'नैरइए' नैरयिका भाग कम एक पल्योपमकी है। धनद-वैश्रमण-की स्थिति दो पल्योपमकी है । तथा वरुणकी स्थिति तीनभाग सहित दो पल्योपमकी है। अपत्यरूप देवोंकी स्थिति एक पत्योपमकी है ॥ ___टीकार्थ-तृतीयशतक में देवसंबंधी विकुर्वणा आदि के विषय में कथन किया है। इस चतुर्थ शतक में भी वही देवसंबंधी कशन किया जावेगा । सर्व प्रथम सूत्रकार इस उद्देशकके अर्थ-संग्रह को गाथासे प्रकट करते हैं-अर्थात् इस चतुर्थ शतकके उद्देशकों में किसर विषयकी चर्चा की जावेगी इस बात को प्रकट करनेवाली गाथा वे कहते हैं-' चत्तारि विमाणेहिं ' इत्यादि-इस गाथा द्वारा उन्होंने यह प्रगट किया है कि-'चत्तारि विमाणेहिं हांति' पहिले के चार उद्देशक विमानों द्वारा सम्पादित हुए हैं-अर्थात् प्रथमके चार उद्देशकोंमें विमान संबंधी वक्तव्यताका प्रतिपादन किया गया है । 'चत्तारि य रायहाणीहिं' अन्त के चार उद्देशक-अर्थात् पंचम, षष्टम, सप्तम और अष्टम ये चार उद्देशक राजधानियों द्वारा सम्पादित हुए हैं-इन चार उद्देशकों में राजधानियोकी वक्तव्यता संबंधी कथन किया गया है। પપમથી ત્રિભાગ ન્યૂન છે. ધનદ (વૈશ્રમણ)ની સ્થિતિ બે પલ્યોપમની છે, વરુણુની સ્થિતિ ત્રણ ભાગ સહિત બે પલ્યોપમની છે, અને પુત્રસ્થાનીય દેવેની સ્થિતિ એક પલ્યોપમની છે. ટીકાર્થ– ત્રીજા શતકમાં દેવોની વિક્ર્વ આદિનું નિરૂપણ કરાયું. આ ચેથા શતકમાં પણ એ દેવેનું વિશેષ નિરુપણ કરવામાં આવ્યું છે. આ શતકનાં ૧૦ ઉદેશકમાં જે જે વિષયનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલું છે, એ દર્શાવનારી એક ગાથા શરૂઆતમાં मापेटी छ- 'चत्तारि विमाणहित्याहि- पडसा या२ शमा विमानानी १४तव्यतानु प्रतिपादन ४२वामा माव्यु . 'चत्तारि य रायहाणीहिं' पायमा, ७४, સાતમાં અને આઠમાં, એ ચાર ઉદેશમાં રાજધાનીઓની વકતવ્યતાનું પ્રતિપાદન શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩

Loading...

Page Navigation
1 ... 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933