Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अथ दशमोद्देशकः प्रारभ्यते
___अथ लेश्यापरिणामवक्तव्यतामूलम्-'से गूणं भंते! कण्ह लेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवताए, तावण्णत्ताए ? एवं चउत्थो उद्देसओ पण्णवणाए चेव लेस्सापदे णेयवो, जाव-परिणाम-वण्ण-रस-गंध-सुद्ध-अपसस्थसंकिलिट्ठ-राहा, गइ-परिणाम--पएसो--गाह-वग्गणा-टाण-मप्पबहुं सेवं भंते ! सेवं भंते ति ॥ सू० १ ॥ ___ छाया-तद् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य तद्रूपतया, तद्वर्णतया ? एवं चतुर्थः उद्देशकः प्रज्ञापनायाश्चैव लेश्यापदे ज्ञातव्यः, यावत्परिणाम-वर्ण-रस-गन्ध-शुद्ध-अप्रशस्त-संक्लिष्टोष्णाः । गति-परिणाम प्रदेशाऽवगाह-वर्गणा-स्थानाल्पबहुत्वम् । तदेवं भगवन् ! तदेवं भगवन् ! इति ॥स.१॥
चतुर्थशतकका दशमा उद्देशक प्रारंभ
लेश्यापरिणामवक्तव्यता___'से गूणं भंते ! कण्हलेस्सा' इत्यादि । सूत्रार्थ-(से गृणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए, तावण्णत्ताए) हे भदन्त ! कृष्णलेश्या नीललेश्याके संयोगको प्राप्तकर क्या नीललेश्याके रूपमें और उसके वर्णरूपमें बदल जाती है ? (एवं चउत्थो उद्देसओ पण्णवणाए चेव लेस्सापए णेयव्वो) हे गौतम! प्रज्ञापनासूत्र में कथित लेश्यापदका चौथा उद्देशकके यहां कहना चाहिये और वह (जाव परिणाम वण्ण रस गंध सुद्ध अपसत्थ संकिलिट्ठ-हा,
ચેથા શતકનો દસમો ઉદેશક પ્રારંભ
લેશ્યા પરિણુમનું નિરૂપણુ'से णूणं भंते ! कण्हलेस्सा' त्या
सूत्रा- (से गुणं भंते। कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए, तावण्णत्ताए.) महन्त ! वेश्या नासोश्यान। स या पाभान नीवेश्या ३थे मसाधने नीलमेश्याना १[नी मनी नय छ १ (एवं चउत्थो उद्देसओ पण्णवणाए चेव लेस्सापए णेयध्वो) गौतम! प्रज्ञापनसूत्रमा माघे श्यापहना यो। उहेश २मही ४३ मे. (जाव परिणाम-वण्ण-रस-गंधसुद्ध-अपसत्थ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
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