Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 933
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. 4 उ. 10 सू. 1 लेश्यापरिणामनिरूपणम् 919 जघन्यकानि शुक्ललेश्यास्थानानि द्रव्यार्थतयाऽसंख्येयगुणानि' इत्यादि / एवं प्रदेशार्थतया द्रव्यार्थप्रदेशार्थतयाऽपि बोध्यम् / अन्ते गौतमः स्वीकरोति-' सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति / तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति // मू० 1 // इति-श्री-विश्वविख्यात-जगढल्लभ-प्रसिद्धवाचक पञ्चदशभाषाकलित ललितकलापालापक-विशुद्ध गद्यपद्यनैकग्रंथनिर्मापक वादिमानमर्दक श्री शाहूच्छत्रपति कोल्हापुरराज पदत्त "जैनशास्त्राचार्य" पदभूषित कोल्हापुरराज गुरु-बालब्रह्मचारी-जैनशास्त्राचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य श्री घासीलालबतिविरचितायां "श्री भगवतीमत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां चतूर्थशतकं सम्पूर्णम् // 4-10 // हुए गौतम प्रभुसे कहते है कि 'सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति' हे भदन्त ! जैसा आप देवानुप्रिय! ने कहा है वह ऐसा ही हैहे भदन्त ! वह ऐसा ही है। इस प्रकार कह कर गौतम अपने स्थान पर विराजमान हो गये // सू. 1 // जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराजकृत 'भगवतीसूत्र' की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्यासे चतुर्थशतक का दशवां उद्देशक समाप्त // 4-10 // મહાવીર પ્રભુનાં વચમાં શ્રદ્ધા, ભકિતભાવ અને પ્રમાણભૂતતા પ્રકટ કરતાં गौतम स्वामी भने 4 छ, “सेवं भंते ! सेवं भंते! ति" "3 word मापना વાત બિલકુલ સત્ય છે. હે ભદન્ત! આ વિષયનું આપે જે પ્રતિપાદન કર્યું, તે યથાર્થ છે,” એમ કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણ નમસ્કાર કરીને તેઓ તેમને સ્થાને બેસી ગયા. જૈનાચાર્ય શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકૃત “ભગવતી’ સૂત્રની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના ચોથા શતકનો દશમો ઉદ્દેશ સમાપ્ત છે 4-10 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : 3

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