Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगक्तीसत्रे ___टीका-तृतीयोद्देशके क्रिया निरूपिता, सा ज्ञानिनां प्रत्यक्षीभूता, इति तदेव क्रियाविशेषमाश्रित्य वैचित्र्येण प्रतिपादयितुं चतुर्थोद्देशकमारभते-'अणगारे ण भंते !' इत्यादि । गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! अनगारः 'भाविअप्पा' भावितात्मा भावितः संयमेन तपसाच वासित उन्नती कृतः ज्ञानवत्तया सम्पादितः आत्मा स्व स्वरूपं येन सः, 'एवंविधस्य अनगारस्य हि प्रायोऽवधिज्ञानादिलब्धयो भवन्ति' इति अनुसृत्य भावितात्मा इत्युक्तम् , देव 'वे
और यह संयोग यावत् बीज तक करना चाहिये। (एवं जाव पु. प्फेणं समं बीयं संजोइयव्बं) इसी तरह से यावत् पुष्प के साथ भी बीजका संयोग करलेना चाहिये । (अणगारे णं भंते! भावियप्पा रुक्खस्स कि फलं पासइ ?) हे भदन्त ! भावितात्मा अनगार क्या वृक्ष के फलको, देखता है कि बीज को देखता है ? (चउभंगो) हे गौतम ! यहां पर भी चार भंग जानना चाहिये।
टीकार्थ-तृतीय उद्दशक में क्रिया का निरूपण किया गया है । यह क्रिया ज्ञानीजनों के प्रत्यक्ष होती है-इस कारण इसी क्रिया विशेषको आश्रित करके इसका विचित्ररूप से प्रतिपादन करनेके लिये इस चतुर्थे उद्दशक का प्रारंभ हुआ है 'अणगारेण भते ! इ त्यादि-गौतम प्रभु से पूछते हैं कि संयम और तप से जिसने अपनी आत्माको उन्नत किया है-सम्यक् ज्ञानरूप से सम्पादित किया है-- क्यों कि ऐसे अनगार के प्रायः अवधिज्ञानादिक लब्धियां प्राप्त होती हैं इसी बात को लेकर यहां 'भावितात्मा' ऐसा पद कहा है-इस ४२३ मे, भने ४ ५य-त ते सया॥ ४२३ मे. ( एवं जाव पुप्फेणं समंबीयं संजोडयव्वं) 20 प्रभारी भूत पय-तना मगे। साथ मीसा संयोग ४२नये. ( अणगारे णं भंते ! भावियपा रुक्खस्स किं फलं पासइ, बीयं पासड?) महन्त ! वितात्मा असार वृक्षना ने मे छीनने छ ? (चउभंगो ) गीतम! सही ५५ ॥२ वि४८५। सभा मे.
ટીકાથે–ત્રીજા ઉદ્દેશકમાં ક્રિયાનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું. તે ક્રિયા જ્ઞાનીજને પિતાની આંખે જોઈ શકે છે. તે કારણે તે ક્રિયા વિશેષને અનુલક્ષીને તેનું વિચિત્રરૂપે गतिपाहन ४२वाने माटमा व्याथा देश/नी २३मात ४२वामा मापी छ. 'अणगारे णं भंते ! त्याहि" गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे सयम अने तथा 0 પિતાના આત્માની ઉન્નતિ કરી છે-જેણે સમ્યકજ્ઞાન પ્રાપ્ત કર્યું છે ( કારણ કે એ भागार अधिज्ञान मा यो १३२ भारत ४२ छ) मे भावितात्मा'
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩