Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 861
________________ - - - - - - प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.७ सू.५ वैश्रमणनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८४७ मार्गेवा त्रिके त्रिदिग्गमनमार्गे वा चतुष्के चतुर्दिग्गमनमार्गे वा (चौक इति भाषा पसिद्धे ) चत्वरे अनेकमार्गसंगमे तथा चतुर्मुखे चतुर्वीथीसमागममार्गेवा, महापथे-राजमार्गे वा, पथे सामान्यमार्गे वा, 'नयरनिद्धमणेमु 'नगरनिद्धमनेषु वा नगरजलनिर्गमनमार्गेषु वा(नाला गटर इति प्रसिद्धेषु)सुसाण गिरि-कंदर-संति-सेलो-वट्ठाण-भवण-गिहेसु' श्मशान-गिरि-कन्दरा-शान्तिशैलोपस्थान-भवन-गृहेषु, तत्र श्मशानगृहे पितृवनगृहे वा गिरिगृहे पर्वतोपरि रचितगृहे वा कन्दरागृहे, गुफागृहे वा, शान्तिगृहे शान्तिकर्मयज्ञाद्यनुष्ठान मण्डपे वा शैलगृहे पर्वतान्तः खातद्वारा रचित गृहे वा, उपस्थानगृहे समस्थानगृहे बा, भवनगृहे कुटुम्बिनिवास गृहे वा ' संनिकिखत्ताई' संनिक्षिप्तानि संगोप्य संस्थापितानि रूप्यकादीनि पूर्वोक्तानि द्रव्याणि 'चिट्ठति' तिष्ठन्ति, 'न ताइ, न तानि द्रव्याणि 'सक्कस्स, शक्रस्य 'देविंदस्स' तीनदिशाओंको जानेवाले मार्ग जहांपर आकर मिले हो ऐसे मार्गमें, चतुष्क-चारों दिशाओंको जाने के चार मार्ग जहाँ पर आकर मिले हो, ऐसे मार्गमें, चत्वर-अनेक मार्गोंका संगम जहांपर हुआ हो ऐसे मार्गमें, चतुर्मुख-चार रास्ता वाला मार्गमें, महापथ राजमार्गमें, पथ सामान्य मार्गमें, तथा 'नयरनिद्धमणेसु, नगर का जल जिस स्थानसे निकलता हो ऐसे नालेमें 'सुसाण-गिरि-कंदर-संति-सेलोवट्ठाण-भवण गिहेसु, श्मशान में, पर्वत के ऊपर बने हुए ग्रहमें, कन्दरागुफामें, शान्तिगृहमें-शान्तिकर्म जहांवर किये जाते हो ऐसे मंडपमें, उपस्थानमें पर्वतको काटकर बनाये हुए घरमें, भवनगृह में कुटुम्बिजनोंके निवासभूत घरमें, 'संनिक्खित्ताई चिटुंति' छुपाकर रख दी गई हो अर्थात् ત્રિકમાં જ્યાં ત્રણ દિશામાં જવાના માર્ગે મળતા હોય એવી જગ્યામાં ચતુષ્કમાં [ચાર દિશાઓમાં જવાના માર્ગે જ્યાં મળતા હોય એવી જગ્યામાં], ચત્વરમાં [અનેક માર્ગે જ્યાં મળતા હોય એવી જગ્યામાં] ચતુર્મુખમાં [ચાર રસ્તાવાળા भागमi], भा५यमा [२४ भागभां] ५थमा [सामान्य भागम]], तथा नयरनिद्धमणेस' नगर्नु / यांथी नीतु डाय सेवा नाणामा, 'सुसाण' गिरि-कंदरसंति-सेलोवाण-भवण-गिहेसु' स्मशानभां, पत ५२ मनावर घरमां, शुभां શાતિગૃહમાં- શાન્તિકર્મ કરાય છે એવા મંડપ આદિ સ્થાનમાં, ઉપસ્થાનમાં પર્વતને છેદીને બનાવેલાં ઘરોમાં, ભવનેમેંકુટુંબીઓના નિવાસસ્થાનરૂપ ગૃહમાં 'संनिक्वित्ताह चिटुंति' छुपाचवामा साक्षी डाय, मेटले पूजित गुहा नुहा પ્રકારની દ્રવ્યરાશિ કે જેને પૂર્વોક્ત સ્થાનમાં છુપાવવામાં અથવા દાટવામાં આવેલી છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩

Loading...

Page Navigation
1 ... 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933