Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 868
________________ ८५४ भगवतीस्त्रे आधिपत्यं यावत्-विहरन्ति, तद्यथा-चमरः अमरेन्द्रः असुरराजः, सोमः, यमः, वरुणः, वैश्रवणः, बलिरोचनेन्द्रः, वैरोचनराजः, सोमः, यमः, वरुणः, वैश्रवणः, नागकुमाराणां भदन्त ! पृच्छा ? गौतम ! दश देवाः आधिपत्यं यावत्-विहन्ति, तद्यथा धरणः खलु नागकुमारेन्द्रः नागकुमारराजः काल सूत्रार्थ-(रायगिहे नयरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-असुरकुमाराणं भंते ! देवाणं कइ देवा आहेवच्चं जाव विहरंति) राजगृहनगरमें यावत् पर्युपासना करते हुए श्री गौतमस्वामीने भगवानसे इस प्रकार पूछा हे भदन्त ! असुरकुमार देवोंके ऊपर कितने देव अधिपतित्व करते हए यावत् विचरते हैं ? (गोयमा ! दसदेवा आहेवच्चं जाव विहरति) है गौतम! असुरकुमार देवोंके ऊपर दश दश देव अधिपतित्व करते हुए यावत् विचरते हैं । (तंजहा) दशभवनपति के नाम ये हैं (चमरे असुरिंदे असुरराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे, बली, वइरोयणिंदे, बहरोयगराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे) असुरेन्द्र, असुरराज चमर १, सोम २, यम ३, वरुण ४, वैश्रमण ५, वैरोचनेन्द्र, वैरोचनराजलि ६, सोम ७, यम ८, वरुण ९, और वैश्रमण १०, (नागकुमाराणं भंते ! पुच्छा) हे भदन्त ! नागकुमार देवोंके ऊपर कितने देव अधिपतित्व करते हुए यावत् विचरते हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (दसदेवा आहे. बच्चं जाव विहरति) नागकुमार देवों के ऊपर दशदेव आधिपतित्व करते हुए यावत् विचरते हैं। (तं जहा) उनके नाम ये है (धरणे सूत्राथ:- (रायगिहे नयरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-अरसुकुमाराणं भंते ! देवाणं कइ देवा आहेवच्चं जाव विहरंति ?) २०४] नगरमा महावीर સ્વામી પધાર્યા. ઇત્યાદિ સમસ્ત કથન અહીં ગ્રહણ કરવું. પર્ય પાસના કરીને ગૌતમ સ્વામીએ આ પ્રમાણે પૂછયું- “હે ભદન્ત! અસુરકુમારદેવે પર કેટલા દેવનું मधिपतित्व माहि या छ?" (गोयमा) गौतम ! (दस देवा आहेवच्चं जाब विरंति) तमना ५२ ६स वार्नु मायतित्व माहि यासे छ. (तंजहा) तेस वानi नाम नीय प्रभा छ - (चमरे-असुरिंदे असुरराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे, बली-वइरोयणिदे, वइरोयणराया, सोमे, जमे, वरुणे वेसमणे) (1) मसुरेन्द्र असु२२।०४ यभ२, (२ था ५) यभरना या सोपासो सोम, यम, १२॥ અને વૈશ્રમણ, [૬] વીરેચનેન્દ્ર કૌરેચનરાજ બલિ, ૭િ થી ૧૦] બલિના ચાર લોકપાલે सोम, यम, १२५ भने श्रम. (नागकुमाणं भंते ! पुच्छा) : महन्त ! नागभार हे ५२ ४८सा हेवार्नु मविपतित्व छ ? (गोयमा! दस देवा आहेवच्चं जाव विद्वाति गौतम! नामा । ५२ ६स वार्नु मधिपतित्व छे (तंजडा) तमना શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩

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