Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.६सू.३ चमर आत्मरक्षकदेवविशेषनिरूपणम् ७५५ इन्द्राणां यस्य यावन्त आत्मरक्षकास्ते भणितव्याः । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ सू० ३ ॥
टीका-गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! 'चमरस्स णं' चमरस्य खलु 'असुरिंदस्स' असुरेन्द्रस्य, 'असुररण्णो' असुरराजस्य 'कई' कति 'आयरक्खदेवसाहस्सीओ' आत्मरक्षकदेवसाहस्त्र्यः ‘पण्णत्ताओ' प्रज्ञप्ताः कथिताः ? भगवानाह-'गोयमा' छप्पनहजार आत्मरक्षकदेव चमर के कहे गये हैं । (तेणं आयरक्खावण्णओ-एवं सव्वेसिं इंदाणं जस्स जत्तिया आयरक्खा ते भाणियव्वा सेवं भते ! सेवं भंते !) यहां आत्मरक्षकदेवों का वर्णन समझना चाहिये । तथा समस्त इन्द्रों के जिसके जितने आत्मरक्षक देव हैं उनका भी यहां कथन समझलेना चाहिये । हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है हे भदन्त ! वह ऐसा ही है-इस प्रकार कह कर गौतम अपने स्थान पर विराजमान हो गये। इस प्रकार तृतीय शतकमें यह छठवां उद्देशक समाप्त हुआ ॥
टीकार्थ-विकुर्वणा का अधिकार चल रहा है अतः विकुर्वणा करनेमें समर्थ जो देव हैं उनमें से विशेष देवोंका निरूपण करनेके लिये यहां कहा जा रहा है-इस पर गौतम प्रभु से पूछते हैं 'चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररणो' कि हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के 'कइ आयरक्खदेव साहस्सीओ पण्णत्ताओ कितने रक्खदेवसाहस्सीओ पण्णताओ ) यभरना यात्मरक्ष । मेलामा ७५ १२ छे. (तेणं आयरक्खा वण्णओ-एवं सव्वेसिं इंदाणं जस्स जत्तिया आयरक्खा ते भाणियवा) मडी यात्म२३४ वान वन थQ नये, अने. १२४ ४न्द्रनामा આત્મરક્ષક દેવો છે. એ પણ કહેવું જોઈએ. __ (सेव भंते ! सेवं भंते !) 3 महन्त ! मापे प्रतिपाइन युते यथार्थ છે, આપની વાત સાચી છે. આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણું નમસ્કાર કરીને, ગૌતમ સ્વામી પિતાની જગ્યાએ બેસી ગયા. આ રીતે ત્રીજા શતકને છઠ્ઠો ઉદ્દેશક સમાપ્ત થયા.
ટકાથ–વિમુર્વણાનો અધિકાર ચાલી રહ્યો છે. તેથી વિમુર્વણ કરવાને સમર્થ જે દેવો છે એમાંના વિશિષ્ટ દેવોનું નિરૂપણ આ સૂત્રમાં કરવામાં આવ્યું છે.
गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे ? 'चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररणों' 3 महन्त ! मसुरेन्द्र, मसु२२॥य यभरन। 'कइ आवरक्खदेवसाहस्सीओ पण्णता?? 21 M२ मात्भरक्ष व द्या छ ? भडावीर प्रसुतना मा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩