Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे येऽपिच तस्य यथाबादराः पुद्गलास्तेऽपि च तस्य परिणमन्ति, तद्यथाउच्चारतया, प्रस्रवणतया, यावत्-शोणिततया, तत् तेनार्थेन यावत्-नो अमायी विकुर्वते, मायी तस्य स्थानस्य अनालोचितप्रतिक्रान्तः कालं करोति, नास्ति लहेणं पाणभोयणे णं अहि, अट्टिमिजा, पयणुभवंति) अमायी-अप्रमत्त तो रूक्ष भोजन-गरिष्ठ भोजन नहीं करता है, अतःऐसा आहार कर वह वमन नहीं करता, इस रूक्ष पान भोजन से उसके हाड, हाडोकीमज्जा, बलिष्ठ मजबूत नहीं हो सकती है-प्रतनु रहती है (बहले मंस सोणिए) मांस और खून उसका बढजाता है। (जे वि य से अहा बायरा पोग्गला ते वि य से परिणमंति) तथा उसके उस आहार के जो यथाबादर पुद्गल होते है वे भी उसके परिणत हो जाते है.(तंजहा) उनका परिणमन किस२ रूप से होता है-इसी बात को स्पष्ट किया जाता हैं (उच्चारत्ताए, पासवणत्ताए, जाव सोणियत्ताए) उस रूक्ष आहार के जो यथाबादर पुद्गल होते है उनका परिणमन उच्चाररूप से प्रस्रवण रूप से यावत् रक्तरूप से होता हैं। (से तेण?णं जाव ना अमायी विकुव्वइ) इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा हैं कि जो यावत् अमाथी अप्रमत्त होता है वह विकुर्वणा नहीं करता है। (माई णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंत काल करेइ) मायी पुरुष अपने द्वारा आचरित प्रवृत्ति की न आलोचना करता है और न उसका तेणं लूहेणं पाणभोयणेणं अहि, अद्विमिजा पयणु भवंति) ममाया - मप्रमत्त મનુષ્ય તે લૂખો આહાર લે છે– ગરિલું ભેજન લેતાં નથી. એવું ભેજન ખાઈ ખાઈને તે વમન કરતો નથી. એવા લૂખા ભોજનથી તેનાં અસ્થિ અને અસ્થિમજજા भभूत थता नथी. ५५ ते प्रतनु (पाdi) २९ छे, (वहले मंस सोणिए) तेना सभा मांस भने alsh qधी onय छे. (जे वि य से अहावायरा पोग्गला ते वि य से परिणमंति) तेना ते मा२ना २२ ४२नमा२ ५६तो डाय छे, ते ते मा६२ पुगतानु परियमन नाय प्रमाणे थाय छ-- (तंजहां--उच्चारत्ताए, पासवण त्ताए, जाव सेोणियत्ताए) ते सूमा माह।२नारे यथा॥६२ हाती डाय छे तेनुं न्या२३५, प्रस५९४३५ यावत् ३धि२३पे परिमन थाय छे. (से तेणटेणं जाव नो अमायी विकुबइ) 3 गौतम ! ते ४२ में मेवु श्यु छ है भायी--प्रभत्त मनुष्य विजुए४२ छ, अभायी--24प्रमत्त मनुष्य विभु ४२ते। नथी. (माईणं तस्स ठाणस्स अणालोइय पडिकंतं कालं करेइ) भायी पुरुष पोताना द्वारा सायरामा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩