Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीमूत्रे ऊर्ध्व विहायः उत्पतेत् ? किम् इति गौतमप्रश्नः, भगवतः उपर्युक्तसमाधानश्च सर्व स्वयमूहनीयम् । गौतमः पुनः पृच्छति ‘से जहानामए' इत्यादि । हे भगवन् ! तद्यथा नाम 'केइ पुरिसे' कोऽपि पुरुषः ‘एगओ पलियंक' एकतः पर्यत तन्नामकासनविशेषं 'काउं' कृत्वा 'चितुजा' तिष्ठेत्-उपविशेत् एवमेव बैठता है तो इस स्थिति में जैसा उसका आकार होता है इसी आकार में अपना विक्रियाजन्य आकार निष्पन्नकर भावितात्मा अनगार क्या आकाश में ऊँचे उड सकता है ? प्रभु इस प्रश्नके उत्तर में गौतम से कहते हैं कि 'तं चेव जाव विकुविसु वा विकुव्विति वा विकुविस्संति वा' हे गौतम इस विषय में समस्त कथन पूर्वोक्त रूप से ही जानना चाहिये यावत् वह भावितात्मा अनगारने भूतकाल में न ऐसी रूप विक्रियाकी है, न वह वर्तमान में ऐसी रूप विक्रिया करता है, और न भविप्यत्काल में वह ऐसी रूप विक्रिया करेगा ही, यह तो केवल ऐसी विक्रिया करने की उसमें शक्ति है यही बात इस कथन से प्रकट की गई है। गौतमस्वामी फिर प्रभुसे पूछते हैं कि (जहानामए केइ पुरिसे) जैसे कोइ पुरुष (एगओ पलियकं काउं) एक ओर पद्मासनको धारणकरके (चतुजा) बैठता है (एवंचेव) उसी प्रकार (भावियप्पा अणगारे वि) भावितात्मा अनगारभी एक ओर पर्यङ्कासन लगाकार बैठाहुआ पुरुषाकप्रकी विकुर्वणा करके वह आकाशमें उड सकता सकता है क्या ? भगवान इस प्रश्नका उत्तर देते हुए कहते हैं कि (तं चेव जाव) इस प्रश्नका उत्तर और इस प्रकार के दूसरे प्रश्नोत्तर માંડીને બેઠેલા પુરુષ આકારની વિમુર્વણા કરીને, શું ભાવિતામા અણગાર આકાશમાં ઊંચે
ही छ ? तेन. २ प्रभु मा प्रमाणे सापेछ- 'तं चेव जाव विकुविसु वा, विकुव्वंति वा, विकुचिस्संति वा' गौतम ! या विषयमा समस्त ४थन माग મુજબ જ સમજવું. પરંતુ એ પ્રકારની વિમુર્વણ કદી તેને ભૂતકાળમાં કરી નથી, વર્તમાનમાં કરતા નથી અને ભવિષ્યમાં કરશે પણ નહીં તેમની વિમુર્વણુ શક્તિ બતાવવાને માટે જ આ કથન કરાયું છે. ___ -" से जहानामए केइपुरिसे' वी शते ४ पुरुष 'एगो पलियंक काउं चिटेजा' मे त२५ पर्यसन मांजन से छे. 'एवं चेव, मेवा शते 'भावियप्पा अणगारे वि त्याह' से त२६ पर्यसन भांडीने भेटेमा पुरुष આકારની વિદુર્વણા કરીને, શું ભાવિતાત્મા અણગાર આકાશમાં ઊંચે ઉડી શકે છે? मा प्रश्न उत्तर भापता भगवान ४ छे (तं चेवजाव) मा प्रश्न २ तया
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩