Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे किम् आत्मद्धर्था गच्छति, परद्धर्या वा गच्छति ? गौतम ! आत्मद्धर्या गच्छति, नो परद्धा, एवम् आत्मकर्मणा, नो परकर्मणा, आत्मपयोगेण, नो परपयोगेण, उच्छ्तिोदयं वा, गच्छति, पतदुदयं वा गच्छति, स भदन्त! किम् अनगारोऽश्व: ? गौतम ! अनगारः सः, नो खलु सोऽश्वः, एवं यावत् (हंता पभू) हां, गौतम ! भावितात्मा अनगार एक विशाल अश्वका रूप अभियोजित कर अनेक योजनो तक जाने के लिये समर्थ है (से भंते ! आयडूढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छइ ?) हे भदन्त ! भावितात्मा अनगार जो एक विशाल अश्वकरूपकी विकुर्वणा करके अनेक योजनो तक जाने के लिये समर्थ होता है-सो क्या वह अपनी निजकी शक्तिसे जाता है या परकी सहायता से जाता है ? (गोयमा! आयड्ढीए गच्छइ. णो परिड्डीए गच्छइ) हे गौतम ! भावितात्मा अनगार जो एक विशाल अश्वकरूपकी विकुर्वणा करके अनेक योजनों तक जाता है सो अपनी निजकी शक्ति से ही जाता है। परकी सहायता से नहीं जाता है। (एवं आयकम्मुणा, नो परकम्मुणा, आयप्पयोगेणं, नो परप्पयोगेणं) इसी तरह से वह इतनी दूर तक अपने निज के कर्म से जाता है, पर के कर्म से नहीं जाता है, आत्मप्रयोग से जाता है, परके प्रयोग से नहीं जाता है । (उसिओदयं वा गच्छइ, पयओदय वा गच्छइ,) तथा वह सीधा भी जाता है और विपरीत भी जाता है। (से णं अणगारे आसे ?) हे भदन्त वह अनगार હા, ગૌતમ ! એક મહા અશ્વરૂપને અભિજિત કરીને અનેક જનપર્યત જવાને ते समय छे. (से भंते ! आयइडीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छइ ?) 3 महन्त ! ભાવિતાત્મા અણુગાર એ પ્રકારના રૂપને અભિજિત કરીને જે અનેક જન પર્યન્ત ગમન કરે છે, તે શું તેની પિતાની શકિતથી કરે છે, કે અન્ય સહાયતાથી કરે છે? (गायमा ! आयड्ढीए गच्छइ, णो परिढीए गच्छड) : गौतम ! ते माविતામાં અણગાર એક મહા અશ્વમ્પને અભિજિત કરીને જે અનેક પેજ પર્યત ગમન કરે છે, તે તેની પિતાની શક્તિથી જ કરે છે, અન્યની સહાયતાથી કરતા નથી, ( एवं आयकम्मुणा, नो परकम्मुणा, आयप्पयोगेणं, नो परप्पयोगेणं) मे०४ પ્રમાણે તે આત્મકથી એટલે દૂર જાય છે–પરકર્મથી જતું નથી, અને આત્મપ્રગથી तय छ-५२प्रयागयी तो नथी, (उसिओदयं वा गच्छड, पयोदयं वा गच्छद) ते सीधे। ५९५ छ भने विपरीत पर नय छे. ( से गं अणगारे आसे ?)
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩