Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 720
________________ ७०६ भगवती सूत्रे 'परिड्ढीए गच्छइ ?' परद्धय वा गच्छति ? भगवान् आह - 'गोयमा ! इत्यादि । हे गौतम! 'आयडीए गच्छई' आत्मद्वर्या स्वसामर्थ्येन गच्छति, 'नो परिढीए' नो परद्धय परसामर्थ्येन एवं तथेत्र 'आयकम्मुणा' आत्मकर्मणा, गो परकम्मुणा' नो परकर्मणा, 'आयप्पयोगेणं' आत्मप्रयोगेण, 'नो परप्पयोगेणं' नो परप्रयोगेण, 'उस्सिओदयंवा गच्छइ' उच्छ्रितोदयं सरलं वा गच्छति, पयओदयं वा, पतदुदयं कुटिलं वक्रं वा गच्छ गच्छति । पुनर्गोतमः पृच्छति'सेणं ते!" हे भगवन् ! स खलु 'किं अणगारे आसे ?' किम् अनगारः, आहोस्वित् अश्वः ? भगवानाह - 'गोयमा !' हे गौतम! 'अणगारे णं से' अनगारः खलु स वर्तते, 'नो खलु से आसे' नो खलु स अश्वः वस्तुतोऽसामर्थ्य से जाता है कि 'परिइदीए गच्छद्द' परकी सामर्थ्य से जाता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि- हे गौतम! 'आयड्ढीए गच्छइ' वह भावितात्मा अनगार अपने सामर्थ्य से जाता है, 'नो परिड्ढीए' पर के सामर्थ्य से नहीं जाता है । ' एवं ' इसी तरह से 'से' वह 'आयकम्मुणा' अपने निजकर्म से क्रिया से जाता है, परकी क्रियासे नहीं जाना है । 'आयप्पयोगेणं' आत्मप्रयोग से अपनी प्रेरणा से जाता है 'नो परप्पयोगेणं' परकी प्रेरणा से नहीं जाता है । 'उस्सिओदयं वा गच्छइ' सरलरूपमें भी जाता है और 'पयओदय वा' कुटिल - वक्ररूप से भी जाता है । गोतम पुनः प्रभुसे पूछते हैं कि-' से णं भंते! किं अणगारे आसे' हे भदन्त वह भावितात्मा अनगार जब अश्वके रूपमें अभियोजना करता हैं तब क्या वह अश्व बन जाता है या नहीं ! इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं કરીને અનેક ચેાજન પર્યન્તનું તે જે ગમન કરે છે, તે તેની પોતાની શક્તિથી કરે છે, કે 'परिडूढीए' अन्यनी सहायताथी रे छे ? - उत्तर- 'आयड्ढीए, गच्छइ, णो परिड्ढीए' ३ गौतम ! भावितात्मा मधुगार તેની પોતાની ઋદ્ધિથી (શકિતથી) એટલે બધે દૂર જાય છે, અન્યની સહાયતાથી જતા નથી 'एवं आयकम्मुणा' भने तेनी खत्म कियाथी लय छे, 'णो परकम्मुणा' अन्यनी झियाथी ४ता नथी. 'आयप्पयोगेणं' आत्म प्रयोगथी (पोतानी प्रेरणाथी) लय छे, नो 'परप्पयेोगेणं' मन्यनी प्रेरणाथी बता नथी. 'उस्सिओदय वा गच्छइ, पयओदयं वा गच्छ' सरजइये पशु लय छे, १४३ये अथवा विपरीतइये पशु लय छे. प्रश्न - ' से णं भंते किं अणगारे आसे ?' हे लहन्त क्यारे ते लावितात्मा અણગાર અશ્વરૂપની અભિયેાજના કરે છે. ત્યારે શ તે અશ્વ બની જાય છે કે નહીં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩

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