Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
__भगवतीको पेरणया गच्छति ‘एवं' तथैव नो 'आयकम्मुणा' आत्मकर्मणा स्वक्रिययाऽपि न गच्छति, अपितु 'परकम्मुणा' परकर्मणा अन्यक्रिययैव, तथा नो 'आयपयोगेणं आत्मप्रयोगेण स्वप्रयुक्तेन, किन्तु 'परप्पयोगेणं' परमयोगेणैव अन्यप्रयुक्तेनैव गच्छति, किन्तु 'ऊसिओदयं वा गच्छति' उच्छूितोदयं वा अपि गच्छति ऊर्ध्वस्थितपताकाकारमपि प्रवहति 'पयओदयं वा गच्छइ' पतदुदयं वा गच्छति पतत्पताकाकारमपि वा प्रवहति । गौतमः पुनः पृच्छति 'से भंते ! किंबलाहए इत्थी ?' हे भगवन् ! मेघः किम् स्त्री ? भगवानाह-'गायमा ! इत्यादि। हे गौतम ! 'बलाहए णं से' मेघः खलु स विद्यते, नो खलु सा 'इत्थी' स्त्री, अर्थात् अचेतन है अतः विविक्षित स्वशक्ति का इसमें अभाव है। इसी कारण यह आत्मशक्ति से प्रेरित होकर गमन नहीं कर सकता है। हां, इसे जब वायुके द्वारा प्रेरणा मिलती है या किसी देवके द्वारा प्रेरणा मिलती है तब यह जाने में समर्थ होता है। यही वात 'परिइडीए गच्छइ' इस पाठ द्वारा व्यक्तकी गई है। 'एवं नो आयकम्मुणा, परकम्मुणा, नो आयप्पयोगेणं परप्पयोगेणं असिओदयं वा गच्छद, परओदयं वा गच्छइ ' इसी तरह से वह मेघ आत्मकर्मद्वारा भी नहीं चलता है, परन्तु अन्यकी क्रियासे ही चलता है, अपनी प्रेरणा से मही चलता है, पर के द्वारा प्रयुक्त होने से ही चलता है । उर्ध्वस्थित पताकाके आकार भी चलता है और पतत्पताका के आकार भी चलता है । गौतम पुनः प्रभु से पूछते हैं कि 'से भंते ! किं बलाहए इत्थी' हे भदन्त ! मेघ क्या स्त्री है ? तब प्रभु इसके विषय તે કારણે તે આત્મશકિતથી પ્રેરાઈને ગમન કરતું નથી. પણ જ્યારે તેને વાયુની અથવા કોઈ દેવની સહાયતા મળે છે ત્યારે તે જઈ શકે છે એજ વાતનું 'परिड्रढीए गच्छइ' सूत्रा द्वारा प्रतिपादन राय छे. 'एवं नो आयकम्मुणा, परकम्मुणा, नो आयप्पयोगेणं परप्पयोगेण, ऊसिओदयं वा गच्छइ, परओदयं वा गच्छइ या प्रमाणे भेष माम द्वारा ५ गमन ४२ता नथी, ५ અન્યની ક્રિયાથી જ ગમન કરે છે. પોતાની પ્રેરણાથી ચાલતું નથી, અન્યની પ્રેરણાથી જ ચાલે છે. ઉર્વપતાકાને આકારે પણ ગમન કરે છે અને પતિત પતાકાને આકારે પણ ગમન કરે છે.
प्रश्न- से भंते ! कि बलाहए इत्थी' 3 महन्त ! शुभेध सी
२१३५ छ?
श्री भगवती सूत्र : 3