Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्रे दिपश्चानो मेलनात् पञ्च, प्रवालेन पत्रादि चतुणा संग्रहणात् चतस्रः, पत्रेण पुष्पादि त्रयाणां संयोजनात तिस्रः, पुष्पेण फलबीजयोः-संयोजनाद् द्वे, फलेन बीजस्य संयोजनात एकाः सर्वासां चतर्भङ्गीनां संकलनेन पश्चचत्वारिंशत् चतुभैयः सम्भवन्ति ॥ १० १॥ शाया एवं बीजकी दिकसंयोगी चतुभंग ५ होती है । प्रवाल और पत्रकी, प्रवाल और पुष्पकी, प्रवाल और फलकी, प्रवाल और बीज की द्विक संयोगी चतुर्भगी ४ होती है । पत्र और पुप्पकी, पत्र और फलकी, पत्र और बीजकी विकसंयोगी चतुभगी ३ होती है। पुष्प फल की, पुष्प और धीजकि द्विक संयोगी चतुर्भगीर होती है। एवं फल और बीजकी द्विक संयोगी चतुर्भगी १ एक ही हाती है। इस तरह सबको मिलाकर जोड़ने से ४५ चतुर्भगियोंकी संख्या आ जाती है । यही बात यहां पर 'एवं कंदेण वि समं संजोएयव्वं जाव वीयं' इत्यादि सूत्रपाठ द्वारा व्यक्त की गई है। 'एवं जाव पुप्फेण समं बीयं संजोएयवं' इसी तरह से यावत् पुष्पके साथ बीजपदको युक्त कर लेना चाहिये। ‘एवं कंदेण वि समं' इत्यादि सूत्रपाठ में जो यावत् शब्द आया है उससे 'कंदके साथ स्कंध, त्वकू, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प और फल का प्रहण हुआ है। तथा “एवं जाव पुप्फेण' શકાશે તેના ઉત્તરરૂપ પાંચ ચતુર્ભાગી બનશે. એ જ પ્રમાણે કેપળની સાથે પાન, ફૂલ, ફળ અને બીજના સાગથી ચાર પ્રશ્ન બનશે, અને તેના ઉત્તરરૂપ ચાર ચતુભગી બનશે. એજ પ્રમાણે પાન સાથે કૂલ, ફળ અને બોજને અનુક્રમે સંગ કરીને ત્રણ પ્રો બનશે. એ તેના ઉત્તરરૂપ ત્રણ ચતુર્ભાગી બનશે. એજ પ્રમાણે ફૂલ સાથે ફળને, અને કૂલ સાથે બીજનો સાગ કરવાથી બે પ્રશ્નો બનશે અને તેના ઉત્તરરૂપ બે ચતુર્ભાગી બનશે. આ જ પ્રમાણે ફળ સાથે બીજને લઈને એક પ્રશ્ન બનશે अन तन २३५ मे तुम नशे. माशते ४५ (++७+६+५+3+ ૨+૧) ચતુર્ભાગી બની જાય છે. એજ વાત સૂત્રકારે નીચેના સૂત્રો દ્વારા પ્રકટ કરી છે– 'एवं कंदेण वि समं संजोएयव्वं जाव बीय। मेरा श नी साथ भी। भय-तना पहोने सय ४शन प्रश्नो ५७१ नमे. 'एवं जाव पुप्फेण समं बीयं संजोएयां । मे४ प्रमाणे पु०५ साथ मीपर्य-तना पहना सयारीने प्रश्न पूछ। नये. एवं कंदेण वि समं त्यादि सूत्रपाठभने 'याक्तू' ५६ मायुछ तेना द्वारा 'नी साथे , AI, Wa, , पान, सि, मने जने
] ४२वा नये. तथा एवं जाव पुप्फेण , त्या सूत्रामा 'यावत'
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩