Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे नरकाः संग्राह्याः तथा 'सोहम्मस्स कप्पस्स' सौधर्मस्य कल्पस्य 'अहे' अध:प्रदेशे 'जाव' यावत् , द्वादशदेवलोक-नवग्रैवेयक-पश्चानुत्तरविमानानामधप्रदेशाः संगृह्यन्ते । गौतमः पुनः पृच्छति-अत्थिणं भंते ! इत्यादि हे भगवन् ! अस्ति संभवति युज्यते खलु यत् 'ईसिप्पन्भाराए' ईषत्माग्भारायाः 'पुढवीए' पृथिव्याः 'अहे ' अधःपदेशे असुरकुमारा देवाः परिवसन्तीति किम् ? भगवनाह 'नो इणढे समडे' नायमर्थः समर्थः नेदं संभवति, ईषत् प्रागभाराया अपि अधः द्वितीय पृथिवी के नीचे, तृतीय पृथिवी के नीचे, चतुथ पृथिवी के नीचे, पंचमी पृथिवी के नीचे, छठवीं पृथिवी के नीचे भी नहीं रहते हैं। तथा इसा प्रकर से ये असुरकुमार देव 'सोहम्मस्स कप्पस्स अहे जाव' सौधर्मकल्प से लेकर बारह देवलोक, नवग्रैवेयक, पंच अनुत्तरविमान एवं सिद्ध शिला इन सब के नोचे भी नहीं रहते हैं। 'द्वादश देवलोक, नवग्रेवेयक, पंच अनुत्तर विमान एवं सिद्ध शिला' इन सब का ग्रहण यहां 'यावत्' पद से हुआ है। अब गौतम पुनः प्रभु से पूछते हैं 'अत्थिर्ण भंते! ईसिप्पन्भाराए पुढवोए अहे असुरकुमारा देवा परिवसंति' हे भदंत ! यदि ये असुरकुमार देव न रत्नप्रभा पृथिवी के नीचे रहते हैं, और न शर्करा आदि पृथिवियों के नीचे ही रहते हैं, न बारह में देवलोक के, न नवग्रैवेयकोंके, न पंच अनुत्तर विमानों के नीचे ही रहते है, तब क्या ये ईषत्प्रारभारा (सिद्धशिला) पृथिवी के नीचे रहते है ? तो इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते है कि ‘णो इण: समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् ये असुरकुमार ५५५ रहेता नथी तथा “सोहम्मस्स कप्पस अहे जाव" ते मसुरभार हे। सी. ધર્મ દેવકથી લઇને બારમાં દેવકની નીચે પણ રહેતા નથી, નવ રૈવેયકની નીચે પણ રહેતા નથી, પાંચ અનુત્તર વિમાનની નીચે પણ રહેતા નથી.
પ્રશ્ન—જે અસુરકુમાર દેવે સાતે નરકેની નીચે રહેતા નથી, બારે દેવલોકની નીચે રહેતા નથી, નવે વેકેની નીચે રહેતા નથી. પાંચે અનુત્તર વિમાનની નીચે २ता नथी । शुतमे। "अस्थिणं भंते ! ईसिप्पन्भाराए पुढवीए अहे परिवसंति?" ઈષત્નાભારા પૃથ્વીની નીચે સિદ્ધશિલાની નીચે રહે છે?
त्यारे महावीर प्रभु ४१५ मापे छ-"जो इणट्रे सम " ले गौतम ! भा અર્થ પણ સમર્થ નથી. એટલે કે તેઓ સિદ્ધશિલાની નીચે પણ રહેતા નથી.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩