Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीम्रो संख्येयान् भागान गच्छति, ऊर्ध्वम् संख्येयान् भागान् गच्छति, चमरस्य खलु भदन्त ! असुरेन्द्रस्य, असुरराजस्य, ऊर्ध्वम् , अधः, तिर्यक् च गतिविषयः कतरः ? कतरेभ्योऽल्पोवा, बहुको वा, तुल्यो वा, विशेषाधिको वा ? गौतम ! सर्वस्तोकं क्षेत्रं चमरोऽसुरेन्द्रः, असुरराजः ऊर्ध्वम् उत्पतति एकेन समयेन, तिर्यक्है-(तिरियं संखेजे भागे गच्छइ) तिरछे जानेका क्षेत्र संख्यातभागप्रमाण अधिक है अर्थात् एक समय में शक्र तिरछे क्षेत्र में जाना चाहे तो पहिलेकी अपेक्षा वह कुछ अधिक क्षेत्रतक जाता है । (उद्दे संखेजे भागे गच्छइ) इसी तरह ऊपर जाने का क्षेत्र इसका एक समय में संख्यातभाग प्रमाण अधिक है। अर्थात् एक समय में यदि शक ऊपर के क्षेत्र में जाना चाहे तो तिर्यक क्षेत्र की अपेक्षा कुछ अधिक क्षेत्रतक जाता है। (चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररण्णो उर्ल्ड अहे तिरियंच गइ विसयस्स कयरे कयरेहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा) हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरराज चमर का ऊँचे जाने का विषय-क्षेत्र, नीचे जाने का विषयक्षेत्र, और तिरछे जाने का विषयक्षेत्र कौन किनकी अपेक्षा अल्प है ? कौन किनकी अपेक्षा से बहुत है ? कौन किनकी अपेक्षा से तुल्य है अथवा कौन किनकी अपेक्षा से विशेषाधिक है ? (गोयमा ! सव्वत्थोवे खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया उडू उप्पयइ एक्केणं समएणं) हे गौतम असुरेन्द्र समन श छ. (तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ) शन तिरछु भन ४२. વાનું ક્ષેત્ર અધેગમન ક્ષેત્ર કરતાં સંખ્યાત ભાગ પ્રમાણ અધિક છે. એટલે કે શક એક સમયમાં જેટલો નીચે જઈ શકે છે તેના કરતાં વધારે ક્ષેત્ર સુધી તે એક સમયમાં तिरछु भत२ ४ी छ. (उर्ल्ड संखेज्जे भागे गच्छइ) मे प्रभाव त मे સમયમાં તેના કરતાં પણ સંખ્યાત અધિક ભાગપ્રમાણુ ઉર્ધ્વગમન કરી શકે છે. એટલે કે એક સમયમાં શક જેટલા અંતરનું તિરકસ ગમન કરી શકે છે તેનાથી વધારે * तनुं मन ४ : छ. (चमरस्स गंभंते ! असुररण्णो उर्ले अहे तिरियं च गइविसयस्स कयरे कयरेहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा?) હે ભદન્ત! અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરના ઉર્વ અધો અને તિરછા ગમનની તુલના કરવામાં આવે, તે, કયું કેના કરતાં ન્યૂન છે, કયું કેના કરતાં વધારે છે, કયું કેના १२।२ छे, मने यु ना ४२di विधि छ ? (गोयमा !) हे गौतम ! ( सव्वत्थोवे खेत्तं चमरे अमुरिंदे असुरराया उई उप्पयइ एक्केणं समएणं) मसुरेन्द्र मसुर
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩