Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टी. श. ३ उ.२ स. ११ शक्रचमरयोगतिस्वरूपनिरूपणम् ४७७ एएणं दाण्णि वि तुल्ला सवत्थो वा, सकस्स य ओवयणकाले, वजस्स य उप्पयण काले एसणं दोण्ह वि तुल्ले संखेज्जगुणे, चमरस्स य उप्पणकाले, वज्जस्स य ओवयणकाले, एस दोण्ह वि तुल्ले विसेसाहिए ॥ सू. ११ ॥
छाया-शक्रस्य खलु भदन्त ! देवेन्द्रस्य देवराजस्य ऊर्ध्वम् ' अधः, तिर्यक् च गतिविषयः कतरः कतरेभ्यः अल्पो वा, बहु , तुल्यो वा, विशेषाधिको वा? सर्वस्तोकं क्षेत्रं शक्रो देवेन्द्रः, देवराजः अधोऽवपतति, एकेन समयेन, तिर्यक
'सक्स्स णं भंते ! देविंदस्स देवरणो' इत्यादि । सूत्रार्थ-( सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो) हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्र का (उडू अहे तिरियं च गइविसयस्स) ऊँचे जानेका विषय नीचे जाने का विषय और तिरछे जाने का विषय (कयरे कयरे हितो) कौन किन की अपेक्षा से ( अप्पे वा बहुए वा) अल्प है ? कोन किनकी अपेक्षा से बहुत है ? (तुल्ले वा विसेसाहिए वा) कौन किनकी अपेक्षा से तुल्य है ? अथवा कौन किसकी अपेक्षा से विशेषाधिक है ? ( सव्वत्थोवे खेत्तं सक्के देविंदे देवराया अहे उवयइ एक्केणं समएणं) हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्रका नीचे जानेका विषय क्षेत्र एक समय की अपेक्षा सब से थोड़ा है-अर्थात् एक समय में देवेन्द्र देवराज शक्र नीचे बहुत ही कम क्षेत्र में जाता ' सक्करस णं भंते ? देविंदस्स देवरणो' त्या
सूत्रार्थ-(सक्कस्स णं भंते? देविंदस्स देवरणो) 3 महन्त ! हेवेन्द्र देव२००४ शर्नुि ( उडूं अहे तिरियं च गइविसयस्स) Sqम गमन ४२वानु, भने [
adभा मन ४२वार्नु सामथ्य स२मावामां आवे तो ( कयरे कयरे हिंतो अप्पे वा बहुए वा ?) समांथा यु ना Rai न्यून छ, यु ना ४२तां मधि छ, (तुल्ले वा विसेसाहिवे वा) अनी सार्थ यु सरभु छे, मने ध्यु जाना કરતાં વિશેષાધિક છે?
(सव्वत्थो वे खेत्तं सक्के देविंद देवराया अहे उत्यइ एक्केणं समएणं) હે ગૌતમ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રનું અાગમન કરવાનું સામર્થ્ય એક સમયની અપેક્ષાએ સૌથી ઓછું છે. એટલે કે શુક્ર એક સમયમાં બહુ જ ઓછે અંતરે અલેકમાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩