Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
४२०
भगवतीसूत्रे समुग्घाएणं' वैक्रियसमुदघातेन 'समोहणइ' समवहन्ति, यावत् पदेन 'संखेजाई जोयणाई दंडं निस्सरइ, तं रयणाणं जाव रिहाणं अहा वायरे पोग्गले परिसाडेइ अहासुहुमे पोग्गले परियाइइत्ति' संख्येयानि योजनानि दण्डं निःसृजति तद्रत्नानां यावत् रिष्टानां यथा बादरान् पुद्गलान् परिशातयति यथा सूक्ष्मान् पुद्गलान् पर्यादत्ते' इति संग्राह्यम् , समुद्घातनिर्मितवस्तुमाह-'एगं महं' एका महती विशालां घोरां हिंस्ररूपाम् यतः 'घोरागारं' घोराकारां चोराकृति 'भीम' भीमां भयङ्करां विकरालत्वेन भयोत्पादिकाम् यतः 'भीमागारं' भीमाकाराम् भयङ्कराकृतिम् भयजनकाकतिम् ‘भासुरं' भास्वरां दीप्ताम् 'भयाणीयं' भयानीतां घात करके 'जाव दोच्चंपि' यावत् उसने द्वितीय पार भी 'वेउन्वियसमुग्घाएणं' वैक्रियसमुद्घात से अपने आपको 'समोहणई' सम. वहतकिया वैक्रिय समुद्घात से युक्तकिया-यहां यावत् पदसे 'संखेजा जोयणाई दंडं निस्सरह, तं रयणाणं जाव रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ, अहासुहमे पोग्गले परियाइइ' इस पाठका ग्रहण किया गया है। इस पाठ गत पदोंका अर्थ पीछे लिखा जा चुका है। वैक्रिय समुद्घात द्वारा उसने किस वस्तुका निर्माण किया-इस बात को सूत्रकार करते हैं कि-'एगं महं' इत्यादि उस चमरने वैक्रियसमुद्घात द्वारा 'एगं महं' एक बड़े भारी विशाल शरीरका निर्माण किया। यह निर्मित विशाल शरीर कैसा था-इसी बात को विशेषों द्वारा प्रकट करते हुए सूत्रकार कहते हैं। 'घोरं घोर था हिंस्ररूप था, क्यों कि 'घोरागारं' इसका आकार घोर था-विकराल था। 'भीम' भीभरूप था 'भीमागारं भीम (भयंकर) आकारवाला था विक'समोहणित्ता' मे मत वैश्य समुधात या पछी "जाव दोञ्चपि" मी०पार पशु तेथे “वेउब्वियसमुग्घाएणं" पोतानी onतने यिसभुधातथी 'समोहणइ' युत 30. A[ (पर्य-त) ५४थी नायने। सूत्रा3 अ आयो छ- 'संखेज्जाई जोयणाई दंडं निस्सरइ, तं रयणाणं जाव रिठाणे अहावायरे पोग्गळे परिसाडेइ, अहासुहुमे पोग्गले परियाइइ' २५॥ सूत्रामा मातi Avait म मा આવી ગયો છે. હવે સૂત્રકાર એ બતાવે છે કે તેણે ઐક્રિય સમુદ્રઘાત દ્વારા કેવા રૂપની श्यना री 'एगं मह तेणे मेघा विराट शरीरनु नि यु. सूत्रधार નીચેનાં વિશેષણ દ્વારા તે વૈક્રિય શરીરનું વર્ણન કરે છે “જો તે વિકરાળ હતું, 'घोरागारं ते १ि४२० मारनुं तु, 'भीम' ते लाभ३५ (३४२) तु, 'भीमागारं તેને આકાર ભયંકર હતું. તેની આકૃતિ ભયાજનક હતી કારણ કે તે વિકરાળ હતું.
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૩