Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पमेयचन्द्रिका टीका श. ३. उ. २ सू०९ शक्रस्य विचारादिनिरूपणम् ४५९ संहृतवान् अस्मि, वजपडिसाहरणट्टयाएणं ' वज्रपतिसंहरणार्थतायै खलु वज्रपतिसंहर्तुम् परावर्तयितुम् निवर्तयितुम् किल 'इहमागए' इह आगतः अधुनाऽत्रोपस्थितः 'इह समोसढे' इह समवमृतः समागतोऽस्मि ‘इह संपने इहसंप्राप्तः इहेव अज' इहैवाद्य 'उवसंपजित्थाणं विहरामि' उपसंपध भवच्छरणमुपपद्य विहरामि तिष्ठामि समागतोऽस्मि, 'देवाणुप्पिया !' भो देवानुप्रियाः ! तं खामेमि णं तत तस्मात तदपराधं वा क्षमयामि खलु क्षमां कारयामि क्षमितुं मार्थये 'देवाणुप्पिया' ! भो देवानुप्रियाः ! 'खमंतु मं' क्षमन्तां माम्, मयि क्षमां कुर्वन्तु 'देवाणुप्पिया' भो देवानुप्रियाः ! 'खमंतु मरहति गं' क्षमितुम् अर्हन्ति खलु भवन्तः क्षन्तुमाँः समर्थाः, 'णाइ भुज्जो एवं पकरणयाए, नैवभूयः एवं प्रकरणातायै, नैव कथमपि पुनः अविचार्य उपर्युक्तवज्रप्रक्षेपणाधनुचित कार्य करणे समुद्यतो भविष्यामि ‘त्तिकटु' इति कृत्वा इतिरीत्या क्षमायाचना पूर्वकं निश्चयं विधाय 'मम' माम् 'वंदइ' वन्दते 'नमंसइ' नमस्यति, साहरणट्टयाए णं इहमागए' हे भदंत ! मैं यहां पर प्रक्षिप्त वज्रको पकडने के लिये आया हूं यहां अभी उपस्थित हुआ हूं इह समोसढे यहाँ समवसृत-समागत हुआ हं 'इह संपत्ते यहां संप्राप्त हुआ हूं 'इहैव अद्य' आज ही यहां आपके चरणोंकी शरण प्राप्त कर रहा हं 'भो देवाणुप्पिया' हे देवानुप्रिय! 'तं खामेमिणं मैं अपने उस अपराध की क्षमा मांगता हूं-'देवाणुप्पिया खमंतु मं' हे देवानुप्रिय ! आप उस अपराध को क्षमा करें। 'देवाणुप्पिया' आप देवानुप्रिय 'खमंतुमरहंतिणं' मेरे उस अपराध को क्षमा करने के योग्य हैं । 'णाइ भुजो एवं पकरणयाए' अब मैं आगे किसी भी तरह से बिना विचार किये वज्र प्रक्षेपण आदि अनुचित कार्यकरने में उद्यत नहीं होऊँगा 'त्तिकट्ट' ऐसा कह करके अर्थात् क्षमायाचना पूर्वक प्रतिज्ञा करके-'मम' मुझे उस शक्रने 'वंदइ' वन्दना की 'नमंसइ' नमस्कार याए णं इहमागए' १७ने ५४४ी सेवाने माटे ५ मा मह सागमन थयु छ, 'इह समोसढे ते भाटे ४ ९ सही समस्त थयो छु-०४२ थयो छु,
इह ' संपत्ते । त भाट भारे मही भाव ५७युछ, ' इहैव अध, सत्यारे हुँ माप! २२ भजनुं श२ प्रात ४२॥ २छो छु देवानुप्रिय ! 'तं खामेमिणं' हुँ आपनी क्षमा मा छु, 'खमंतु मं' मा५ मारे। अ५२।मा ४२।. 'खमंतु मरहंतिणं हुँ मापनी क्षमाने पात्र छु. ५ क्षमाना २ छ।. तो भने भा६ ४२. 'णाड भजो प्रत्याहि वे भविष्यमा मावो अ५२।५ ई वी पर नहीं ७३, 'तिक सारे भारी क्षमा मासीन 'ममं बंदर' त्या ' तेणे भने
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૩