Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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म. टी. श.३ उ.२ स. ८ शक्रस्य वजमोक्षणभगवच्छरणागमननिरूपणम् ४३१ न्तम्, हुतवहातिरेकतेजोदीप्यमानम्, जविवेगम् , पुल्लकिंशुकसमानम् , महाभयं, भयंकर चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरराजस्य वधाय वनं निःसृजति, ततः स चमरोऽसुरेन्द्रः, असुरराजस्तं ज्वलन्तं, यावत्-भयंकर वनम् अभिमुखम् आपतन्तं पश्यति, ध्यायति स्पृहयति, (पिधत्ते) स्पृहयति ध्यायति, ध्यावा, २ विखेरने वाले, हजारों स्फुलिंगों की माला से आंखों में चकाचौधी पैदा करने वाले, (हुयवहअइरेगतेयदिपंत) अग्नि के तेज से भी अधिक तेज से प्रदीप्त 'जइणवेगं सर्वातिशायी वेग संपन्न (फुल्लकिंसुयसमाण) प्रफुल्लित किंशुक अर्थात् पताका के समान रक्तवर्ण युक्त (महब्भयं भयंकर) अत्यन्त भयोत्पादक और भयप्रद, ऐसे (वजं) उस वज्र को (असुरिंदस्स असुररण्णो वहाए निसिरह) असुरेन्द्र असुरराज चमरको मारने के लिये छोड़ दिया । (तए णं से असुरिंदे असुरराया तं जलंतं जाव भयंकरं वजमभिमुहं आवयमाणं पासइ) तब असुरेन्द्र असुरराज उस चमरने उस दीप्यमान यावत् भयंकर वज्र को अपने समक्ष आते हुवे देखा (पासित्ता) देखकर फिर उसने (झियाइ) यह क्या है ऐसा विचार किया (पिहाइ) विचार कर अपने स्थान पर चले जानेकी इच्छा करने लगा (पिहाइ)
अथवा उस वज्र को देखकर उसने अपनी दोनों आंखे मीच ली (झियाइ) फिर वहां से चले जाने का वह पुनः विचार करने लगा। હજારે અંગારાને વારંવાર વેરનારું, હજારે તણખાઓની માળાએથી આંખને આંજી नामना३, (हुयवहअइरेगतेयदिप्पंत) मामिना ते ४२ai ५ पधारे तेथी प्रीत, 'जइणवेगं' सातिशायी (सपथी मधिz) वेवा , (फुल्लकिमुयसमाणं) विसित ५iayपना समान are qgol, (महन्भयं भयंकर) सत्यत अय४४ मने लय ४२, (वज्ज) ने ( अमुरिंदस्स असुररण्णो वहाए निसरइ) असुरेन्द्र, मसु२२।०४ यभरने भारवाने माटे छ। यु. (तएणं से अमुरिंदे असुरराया तं जलंतं जाव भयंकरं वज्जमभिमुहं आवयमाणं पासइ) त्यारे ते मसुरेन्द्र અસુરરાજ ચમરે તે જવલંતથી ભયંકર પર્યન્તના વિશેષણેથી યુકત તે વજને પિતાની त२५ आपतु यु. (पासित्ता) ते १००ने पातानी त२६ भातुन (झियाई पिहाइ) तेणे तनी मन्ने मे भीथी सीधी मने त्यांची पाने बिया ये. (झियाई) l मा प्रभार म अरी Natu-qr ने मेले मेवा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩