Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ. २ स. ३ चमरेन्द्रस्य पूर्वभवादि निरूपणम् ३६७ सएव विचारो व्यवस्थितः प्राणामा नामक प्रव्रज्याग्रहणरूपः कार्याऽऽकारेण परिणतः पल्लवित इव ततः प्रार्थितः- सएच इष्टरूपेण स्वीकृतः पुष्पित इव, मनोगतः संकल्पः मनसि दृढरूपेण निश्चयः 'इत्थमेव मया कर्तव्यम् । इति विचारः फलित इव समुदपधत-समुत्पन्नः इत्यर्थः यत् किल मम पुरातम सुचीर्ण सुपरिक्रान्त कृत शुभ कल्याणकर्मणा कल्याणफलकृतिविशेषोऽधुना वर्तते येनाहं सर्वप्रकार पुत्र पशु धन धान्य हिरण्य मणि रत्नादि परिपूर्णोऽस्मि अतो बार २, याद आने लग गया। बार २, याद आने के कारण वह विचार फिर व्यवस्थित हो गया-अर्थात् मैं प्रातः होते ही अब प्राणामा प्रव्रज्या ग्रहण करूंगा-इस प्रकार से वह विचार प्राणामा प्रव्रज्या रूप कार्य के आकार में परिणत हो गया, इस लिये वह पल्लवित हुए अङ्कुरकी तरह कल्पित प्रकट किया गया है । इसी प्राणामा प्रवज्याके धारण करने से मेरी भलाई है-इस रूप से वह विचार स्वीकृत होनेके कारण उसे इष्ट बन गया. अतःपुष्पित हुए अङ्कुर की तरह वह प्रार्थित रूपसे प्रकट किया गया है। मनोगत वह इस लिये कहा गया है, कि वह विचार उसके मनमें दृढरूप से निश्चय रूप में जम गया था कि मैं अब ऐसा ही करूंगा। अतः वह बाहर प्रकट न किया जानेके कारण केवल अभीतक मनमें ही वर्तमान रहा । इस प्रकार इन विशेषणों से युक्त हुआ वह विचार उसे उत्पन्न हुआ। जो अन्त में फलित हुए अङ्कर के समान सफल हुआ । तात्पर्य यह है कि तामलि ने सोचा था कि “ मेरे द्वारा पूर्वभवमें अच्छी तरहसे आचरित किये हुए शुभ कल्याण कारी कर्मोंका ही यह कल्याण फलवृत्ति विशेषरूप उदय है जो मैं इस समय हरएक प्रकारसे कल्याणकारक संपत्ति-धन धान्य, पुत्र, हिरण्य, છે. પ્રવ્રયા ગ્રહણ કરવામાં જ મારૂં હિત રહેલું છે, આ રીતે તે વિચાર સ્વીકૃત થવાને કારણે તેને માટે ઈષ્ટ બની ગયે. માટે તેને પ્રાર્થિત વિશેષણું લગાડયું છે. હજી સુધી તે વિચાર તેણે કેઈની પાસે પ્રકટ કર્યો ન હત–એ વિચાર તેના મનમાં મજબૂત થયો હતો માટે તેના તે વિચારને મને ગત વિશેષણ લગાડયું છે. આ રીત આધ્યાત્મિક, ચિતિત, કપિત, પ્રાર્થિત અને મનોગત સંકલ્પ તેના મનમાં ઉત્પન્ન થયે અને અને તે વિચાર ફલિત થયેલા અંકુરની જેમ સફળ થયે. તામલી બાલતપસ્વીની જેમ જ પૂરણે પણ વિચાર કર્યો કે મેં પૂર્વભવમાં જે શુભ કર્મો કર્યા હતાં તે શુભ કર્મોના ઉદયને પરિણામે જ મારે ત્યાં ધન, ધાન્ય, પુત્ર, સેનું, ચાંદી, મણિ રન આદિ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩