Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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__ भगवतीमूत्रे गजित्वा हयहेषितं करोति, कृत्वा इस्तिगुलगुलायितं करोति कृत्वा रथघनघनायितं करोति, कृत्वा पाददर्दरकं करोति, कृत्वा भूमिचपेटां ददाति, दत्वा सिंहनादं नदति, नदित्वा उच्छलति, उच्छल्य पच्छलति, प्रच्छल्य त्रिपदी छिनत्ति, छित्त्वा वामं भुजम् उच्छ्यति, उच्छ्राय्य दक्षिणहस्तप्रदेशिकया अङगुष्ठनखेन चापि तिर्यगमुखं विडम्बयति, विडम्ब्य महता महता शब्देन कलकलरवं करोति, (भयंकर) आकार वाला था, भास्वर था, भयानक था, गंभीर था, त्रास उत्पन्न करनेवाला था, कालरात्रिकी मध्यरात्रि के समान और उडदकी राशिके समान कृष्णवर्णका था और एक लाख योजन का विस्तार वाला था (विउव्वित्ता) इस प्रकारका शरीर विक्रिया द्वारा निष्पन्न करके (अप्फोडेइ, बग्गइ, गज्जइ) वह अपने हाथोंको पछाडने लगा, कूदने लगा, मेघकी तरह गर्जने लगा (हयहेसियं करेइ) घोडेकी तरह हिनहिनाने लगा (हत्थिगुलगुलाइयं करेइ) हाथी कि तरह किलकिलाट करने लगा ( रघणघणाइयं करेइ ) रथकी तरह घनघन करने लगा (पायदद्दरगं करेइ) पैरोंको जमीन पर वडे जोरसे पटकने लगा। (भूमिचवेटयं दलयइ) भूमि पर घूसा मारने लगा। (सीहणादं नदइ) सिंहकी तरह दहाड मारने लगा (उच्छोलेइ) ऊपर की ओर उछलने लगा (पच्छोलेइ) पछाड मारने लगा (तिवई छिंदइ) त्रिपदी को उसने छेद दिया (वामं भुयं ऊसवेइ) बायें हाथको ऊपर उठा लिया (दाहिणहत्थपदेसिणीए अंगुठणहेण य वि तिरिच्छमुहं विडंबेइ) दाहिने ४२) तुं भने लाम. मावाणु उतुं, मा२५२ (1) तुं, अयान तुं, अमीर , ત્રાસજનક હતું,કાલરાત્રિની મધ્યરાત્રિ સમાન અને અડદના ઢગલા જેવું કૃષ્ણવર્ણનું હતું, અને
मे काम योनना विस्तारवाणु तुं, [विउवित्ता] u Rना वैडिय शरीरर्नु निए शने [ अप्फोडेइ, वग्गइ, गज्जइ ] ते पोताना ७५ पछt341 सायो, ४४. खायो भने मेघना वो ना ४२१: माग्यो, [ हयहेसियं करेइ ] पानी
म २४ लाग्यो, [हत्थिगुलगुलाइयं करेइ] थाना वा यात्।२ ४२वा वाग्यो [रयधणघणाइयं करेइ] उता २थना की धाशुटी ४२१॥ माया, [पायदद्दरगं करेइ] २थी भान ५२ ५५ ५७१ सायो, [भूमिचवेटयं दलयइ] भान 6५२ ५ ५टीने भान ५२ मत ४२१. साया, (सीहणादं नदइ) सिंहनावी गई ना ४२॥ वायो, (उच्छोलेइ) 2 Senqn an-या, [पच्छोलेइ] नाय 4813 भाव यो, (तिवई छिदइ) भूभिमां भुनी रेभ तेQ त्रिपडीतुं छेदन ४यु, (बामभूय ऊसवेइ) मा डायने या जहावीन (दाहिणहत्थपदेसिणीए अंगु
श्री. भगवती सूत्र : 3