Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. ३ उ.२ सू.६ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रियानिरूपणम् ४०३ यितुमित्यर्थः 'त्तिकट्ठ' इति कृत्वा उपयुक्तरीत्या विर्य 'उसिणे' उष्णः कोपा. वेशेन सतप्तः 'उसिणभूए जाए यावि होत्था' उष्णीभूतो जातथापि अभवत् अनुष्णः उष्णो भवतीति तथा भूतः अस्वभाविकरोषाविष्टः संजातः 'त एणं से' ततः कोपावेशानन्तरं खलु सः 'चमरे असुरिंदे' चमरः असुरेन्द्रः 'अमुरराया' असुरराजः 'ओहिं पउंजई' अवधिं प्रयुङ्क्ते अवधिज्ञानप्रयोगं कुरुते ततः 'मम' माम् महावीरं 'ओहिणा' अवधिना अवधिज्ञानोपयोगद्वारा 'आभोएइ' आभोगयति परिपश्यति दृष्ट्वा च तस्य चमरस्य 'इमेयारूवे' अयमेतद्रूपः वक्ष्यमाणप्रकारः 'अज्झथिए' आध्यात्मिकः आत्मगत संकल्पः इति भावः 'जाव-समुप्पज्जित्था' यावत समुदपद्यत समुत्नः, यावत्करणात्-चिन्तितः, प्रार्थितः, कल्पितः, मनोगतः, संकल्पः इति संग्राह्यम् , अथ उपर्युक्तसंकल्पस्वरूपमाह-‘एवं खलु धनी है और मैं अल्प विभूतिवाला हूं परन्तु मैं उसे बातकी बात में परास्त कर सकता हूं-मेरे समक्ष वह शक क्या है कुछ भी नहीं है 'त्तिकट्ट' इस अभिप्राय से प्रेरित होकर वह चमर "उसिणे उसिणभूए जाए यावि होत्था' कोपके आवेशसे संतप्त हो गया और अस्वाभाविक रोषसे आविष्ट हो गया-अग्निके जैसा बन गया । 'तएणं से तब कोपावेशसे भरजानेके बाद उस 'असुरिंदे असुरराया' असुरेन्द्र असुरराजने 'ओहिं पउंजइ' अपने अवधिज्ञानको प्रयुक्त किया-'ममं ओहिणा आभोएइ' और उससे उसने मुझे देखा-जाना। जानकर तब उसे 'इमेयारूवे' इस प्रकारका यह 'अज्झथिए जाव समुपज्जित्था' आत्मगत संकल्प-विचार उत्पन्न हुआ । 'यहां यावत् पदसे संकल्पके 'चिन्तित, प्रार्थित, कल्पित, मनोगत' ये सब विशेषण गृहीत किये गये है। क्या संकल्प उसे उत्पन्न हुआ-इसी बातको अब प्रभु गौतमसे कहते है-कि 'एवं खलु समणे इत्यादि 'समणे 'त्तिक" मा प्रा२नी मान्यताथी प्रेरा ने त मरेन्द्र 'उसिणे उसिणभूए जाए यावि होत्था' अशावेशथी सतत थ६ गयो मने अस्पाविर शेषथी अनि मनी गयो. तेन पनि walad थयो 'तएणं से' मा शत पानी युत मानत ते 'अमुरिंदे असुरराया' असुरेन्द्र असु२००४ यमरे 'ओहिं पउंजई तना भवधिज्ञानना उपयो॥ _ 'ममं ओहिणा अभोएई' भने भवधिज्ञानथी भने यो. त्यारे 'इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पन्जित्था' तेन मा ४।२। मायात्मि, ચિન્તિત, કલ્પિત, પ્રાર્થિત, મનોગત વિચાર ઉત્પન્ન થયો. તેને કયો વિચાર આવ્યો, તે मडावीर प्रभु गौतम स्वामी पासे ५४ रे छ-'एवं खलु समणे त्या श्रम
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩