Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
देवेन्द्र ! देवराज ! दक्षिणार्द्धलोकाधिपते ! इति भोः ! ईशान ! देवेन्द्र 1 देवराज ! उत्तरार्द्धलोकाधिपते ! इति भोः ! इति भोः ! इति तौ अन्योन्यस्य कृत्यानि, करणीयानि प्रत्यनुभवन्तौ विहरतः ॥ २७ ॥
टीका - ईशानेन्द्र वक्तव्यतायाः प्रस्तावेन प्रथमोद्देशकसमाप्तिपर्यन्तं तद्वक्तव्यतायुक्तमेव सूत्रसमूहं कथयितुमारभते - 'सक्कस्स णं' इत्यादि । वायुभृतिः देवराया ? दाहिण लोगाहिबई । इति भो ! ईसाणा ! देविंदा ! देवराया। उत्तर लोग हिवई । इति भो । इति भो त्ति ते अण्णमण्णस्स किच्चाई करणिजाई पच्चणुभवमाणा विहरंति) हे गौतम! जब देवेन्द्र देवराज शक्र को कोई कार्य होता है तब वह देवेन्द्र देवराज ईशान के पास आता है और देवेन्द्र देवराज ईशान को कोई कार्य होता है तब वह देवेन्द्र देवराज शक्र के पास आता है- उस समय उनके बोलने की पद्धति इस प्रकार से है- हे दक्षिणलोकार्ध के स्वामी देवेन्द्र देवराज शक्र | हे उत्तरलोकार्ध के अधिपति देवेन्द्र देवराज ईशान | इस प्रकार से हैं आपस में एक दूसरे को संबोधित करते हुए अपने अपने कार्यको करते रहते हैं ।
टीकार्थ-चूं कि यहां पर ईशानेन्द्र की वक्तव्यता को प्रस्ताव चल रहा है अतः प्रथमोदेशक समाप्ति तक वक्तव्यता चलेगी इसीलिये सूत्रकार उसकी वक्तव्यता से युक्त ही सूत्रसमूह कह रहे हैंदेविंदे देवराया सक्क्स देविंदस्स अंतियं पाउब्भवइ इति भो ! सक्का ! देविंदा ! देवराया ! दाहिणड़ लोगा हिवई ? इति भो ? ईसाणा ? देविदा ? देवराया ? उत्तर लोग हिवई ? इति भो ? इति भो त्ति ते अण्णमण्णस्स किच्चाई कर - णिज्जाई पच्चणुभवमाणा विहरंति ) हे गौतम! न्यारे देवेन्द्र देवरान श४ने अध કાય હાય છે ત્યારે તે દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઇશાનની પાસે આવે છે જ્યારે દેવરાજ દેવેન્દ્ર ઈશાનને ફાઈ કાર્ય હાય છે ત્યારે તે દેવરાજ દેવેન્દ્ર શક્રની પાસે આવે છે. તે વખતે તેઓ આ રીતે એક બીજાને સમેષ્ઠીને પાત પેાતાનાં કાર્યાં કરતાં રહે છે હુ દક્ષિएलोअर्धना स्वाभी, हेवेन्द्र, हेवरान श" "हे उत्तरसोअर्धना अधियति, देवेन्द्र, देवरान शान ! "
टीडार्थ —આ સૂત્રમાં સૂત્રકારે ઇશાનેન્દ્ર અને શક્રેન્દ્રના વિમાનાની ઊંચાઇ, તે બન્નેનાં સંબંધ આદિનું નિરૂપણ કર્યું" છે. વાયુભૂતિ અણુગાર શક્રેન્દ્ર અને ઈશાનેન્દ્રનાં વિમાનાની થાઈ આદિ વિષે જાણવાની જિજ્ઞાસાથી ભગવાન મહાવીરને આ પ્રમાણે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩