Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्र. टी. श. ३ उ. १ सू. २४ देवकृततामले शरीर विडम्बननिरूपणम् २५३
एवम् 'केसणं से ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंदे देवराया' कः एष सः ईशाने कल्पे ईशानो देवेन्द्रः, देवराजः ? न कोऽपि ईशाननामा देवेन्द्रः देवराजः ईशाने कल्पे वर्तते 'त्तिकटु' इति कृत्वा इत्येवंरूपेण ते असुरकुमाराः भर्त्सयन्तो बालतपस्विनः तामलेः मृतशरीरकम् 'हीलंति' हीलयन्ति जन्मकममोद्घाटनपूर्वकं निर्भसयन्ति निन्दन्ति ' कुत्सितशब्दपूर्वकं दोषो
द्घाटनेन अनाद्रियन्ते 'विसंति' हस्तमुखादिविकारपूर्वकम् अपमानयन्ति 'गरिहंति' गर्हन्ते लोकसमक्षे गर्हणां कुर्वन्ति 'अवमन्नंति' अवमन्यन्ते-अवहेलनास्पदं कुर्वन्ति, 'तजंति' तर्जयन्ति अङ्गुल्यादिनिर्देशेन भयिन्ति, ताडयन्ति ययह तामलि है। तथा- 'केसणं ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंदे देवराया' ईशानकल्प में देवेन्द्र देवराज ईशान कौन ? यह वहां भलां अपनी मायाचारी से पालित दीक्षा के प्रभाव से इन्द्र हो सकता है क्या ? वहां पर इन्द्र होने के लिये तो निर्दोषरूप से पालित दीक्षा चाहिये परन्तु ऐसा इसने कुछ नहीं किया है, अतः यह वहां ईशानेन्द्र कैसे हो सकता है ? 'त्ति कट्ट' इस प्रकार घोषणा में कह करके उन असुरकुमारों ने बालतपस्वी तामली के मृतक शरीर की भर्त्सना (तिरस्कार) करते हुए 'हीलंति' जन्म, कर्म और मर्मोद्धाटनपूर्वक उसको खूब अवज्ञा की 'निंदति' निन्दाकी कुत्सिक शब्दोंका प्रयोग करते हए खोटे आक्षेप कह २ कर उसका खूब अनादर किया 'विसति' वे उसके प्रति खूब खिसया गये. अर्थात् अपने हाथ मुंह विकृत बना २ कर उन्होंने उसका अपमान किया 'गरिहंति' लोकों के समक्ष उसकी गर्हणा की, 'अवमन्नंति' अवहेलना की
वा माटे मा वेष अडए ? छ तथा "केस णं ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंदे देवराया" शुशान Tehi - मनवान तेनु सामय छ ? शुतनी દંભી દીક્ષાના પ્રભાવથી તે ઈશાનેન્દ્રનું પદ પ્રાપ્ત કરી શકે તેમ છે? ત્યાં ઈન્દ્ર બનવા માટે તે નિર્દોષ રીતે દીક્ષા પર્યાયનું પાલન થવું જોઈએ. પણ તામલીએ એ રીતે દીક્ષા પાળી નથી, તે તે કેવી રીતે ઈશાનેન્દ્ર બની શકે ? "त्तिक?" उत घोष॥ ४ीन ते मसुमारास ते मासत५वी तामसीना शनी मत्सना (ति२२४१२) ४२ "हीलंति" तन-भ, म अने ममने ai पाडीने तेनी भूप अवज्ञा ४ी. "दिति निन्छ। ४ ४।२ शहोना प्रयोग अशन तथा मोटा साक्षेप भूधीन तेन मनाह . " खिसति" तभए तेना प्रत्येने। तभनी शेष हाय :तथा भुमनी विकृत यष्टासा द्वारा ५४यो. "गरिहति" सोनी समक्ष तेभो तनी गई। (निहा), " अवमन्नंति" Aasaना ४,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩