Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्र. टीका श.३ उ.१ सू. २५ ईशानेन्द्रकृतकोपस्वरूपनिरूपणम् २६७ भूता 'तत्ता' तप्ता साक्षात् प्रज्वलदग्निभूता 'समज्जोइन्भूआ' समज्योतिर्भूता 'जाया यावि' जाता चापि 'होत्था' अभवत् विषमपव्याख्याने क्रियते, 'तएणं' ततः खलु ते 'बलिचंचारायहाणि वत्थव्वया बहवे' बलिचञ्चाराजधानीवास्तव्या वहवः अनेके असुरकुमाराः देवाः देव्यश्च 'तं बलिचचारायहाणि' तां बलिचश्चाराजधानीम् ' इंगालब्भूअं' अङ्गारभूतां 'जाव-समज्जोइन्भूअं ' यावत् समज्योतिर्भूतां 'पासंति' पश्यन्ति, यावत्पदेन 'मुरमुरभूतां भस्मीभूताम् तप्त कटाहकभूताम्' इति संगृह्यते, 'पासित्ता' दृष्ट्वा 'भीआ' भीताः 'तत्या' त्रस्ताः बासेन विद्वलाः 'तसिया' त्रासिताः त्रासं प्राप्ताः दुःखिता इत्यर्थः 'उविग्गा कुल राख जैसी भी हो गई । 'तत्तकवेल्लक भूया' कहीं २ वह तपी हुई कडाही जैसी बन गई तपो हुई कडाई में गरमी ऊपर से नहीं दिखाई देती है पर छूने से वह मालूम पडती है इसी प्रकार से वह बलिचंचाराजधानी भी किसी २ प्रदेश में विजली के करण्ट से युक्त पदार्थ जैसी बन गई अर्थात् उष्ण बन गई 'तत्त' कहीं २ वह अत्यन्न जाज्वल्यमान अग्नि के तुल्य हो गई। 'समज्जोईन्भूया' इस तरह वह एक तरहसे अग्नि के पुंज जैसी ही बन गई। विषम पदोंकी व्याख्या आगेकी जा रही है। 'तएणं' जब बलिचंचाराजधानी की इस प्रकार को दुर्दशा होती हुई 'बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे' बलिचंचाराजधानी के निवासी अनेक असुरकुमार देवोने और देवियों ने अपनी आंखों से निहारी अर्थात् 'बलिचंचारायहाणिं' बलिचंचाराजधानी को वहां के रहनेवाले देवोने और देवियों ने 'इंगालब्भूयं जाव समजोइन्भूयं' अंगाररूप में बनी हुई यावत् अग्नि के जैसी बनी हुई 'पासंति' जब देखा तो 'पासित्ता' देखते ही उनके छक्के छूट गये, में 'भीया' भयभीत हो गये 'तत्था' त्रास से विह्वल बन गये दुःखी 4 . "तत्तकवेल्लकन्भया" तपावेला ता२वी तेनी ६॥ -तपापेक्षा તાવડાને સ્પર્શ કરનાર જેમ દાઝી જાય છે તેમ ત્યાં નિવાસ કરનારાઓ દાઝવા લાગ્યા. " तना" ते अतिशय ते४२वी मसि 2ी मनी B. "समज्जोईन्भया" माशते ते मशिना पू०४ वी मनी 1). तएणं बलिचंचारायहाणिवत्थव्यया न्यारे मलिया રાજધાનીની ઉપરોકત દશા થઇ ત્યારે ત્યાંના નિવાસી અસુરકુમાર દેવ અને દેવિયેની કેવી डासत ४ ते सत्रमा नायनां सूत्रोदा ५४४२ छ-"पासित्ता" न्यारे तमधे ५ચંચા રાજધાનીની ઉપરેત સળગતા કાષ્ઠ, તુષાગ્નિ, તપાવેલા તાવડા આદિ જેવી તપ્ત सत. त्यारे तमा 'भीया' भयभीत थ६ गया, 'तत्था' वासथी माण०या
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩