Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.१ कुरुदत्त अनगारस्वरूपनिरूपणम् १३१
छाया-नवरम्-सातिरेको द्वौ केवलकल्पौ जम्बूद्वीपो द्वीपो, अवशेष तच्चैव एवं सामानिकत्रायस्त्रिंशक-लोकपाल-अग्रमहिषीणोम्; यावत्-एष गौतम ! ईशानस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य एवम् एकैकस्या अग्रमहिष्याः देव्याः अयम एतद्रूपो विषयः, विषयमात्रम् उक्तम् . नो चैव संपच्या व्यर्षिषुर्वा; विकुर्वन्ति वा, विकुर्विष्यन्ति वा ॥ सू. १५ ॥ पहिले के जैसा ही जानना चाहिये (नवरं) परन्तु जो विशेषता है वह इस प्रकारसे है- कुरुदत्तपुत्र को विकुर्वणा शक्ति (सातिरेगे दो केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे) कुछ अधिक दो जंबूद्वीपोंको भर सकती हैं । ( एवं सामागिय तायत्तीसग-लोगपाल-अग्गमहिसीणं) इसी तरहसे सामानिकदेव, ब्रायस्त्रिंशकदेव, लोकपाल और अग्रमहिषियोंक विषयमें भी जानना चाहिये । (जाव एसणं गोयमा! ईसाणस्स देविंदरस देवरण्णो एवं एगमेगाए अग्गमहिसीए देवाए अयमेयारूधे विसए विसयमेत्ते घुइए) यावत् हे गौतम ! यह देवेन्द्र देवराज ईशा नेन्द्रकी एक एक अग्रमहिषीकी विकुर्वणा शक्ति का इस प्रकार का कथन केवल विषयमात्ररूपसे प्रकट किया है (नो चेव णं संपत्तीए विकुब्बिसु वा विकुचंति वा विकुनिस्संति वा) अभी तक उन्होंने न ऐसी विकुर्वाणा की है, न करती है और न आगे भी ऐसी विकुर्वणा वे करेंगी ही ॥ विना विषयमा प्रमाणे २४ सभवा. (नवरं) ५५ तमा विशेषता ते नीय प्रमाणे छ- ( मातिरेगे दो केवलकप्पे जंबदीवे दीवे) २४त्तत्र तेमनी વિકુર્વણ શકિતથી ઉત્પન્ન કરેલાં રૂપે વડે બે જ વૃદ્ધીપ કરતાં પણ વધારે સ્થાનને सरी २४वाने समर्थ छ. (एवं सामाणिय-तायत्तीसग-अग्गमहिसीणं) त्रायसिं२४ हेवी, सोपा मन पट्टीयाना विषयमा ५ ५ २४ सम.. (जाव एसणे गोयमा ! इसाणस्म देविंदम्स देवरुणो एवं एगमेगाए अग्गम हिसीए देवीए अयमे यारूवे विसए विसयमंत्त बुइए) गौतम ! ३१२।२४ हेवेन्द्र शानना प्रत्ये: સામાનિક દેવથી લઈને પ્રચક પટ્ટરાણીના વિકુવર્ણા શાંતનું આ કથન તેમનું સામર્થ્ય मतावा माटे ४२वामा व्यु छे. (नोचेर णं संपत्तिए विकुबिसु वा, विकु वा, विकुविस्संति वा) ५ तमय मा सुधी वा विgaeyn કરી નથી, વર્તમાનમાં કરતા નથી અને ભવિષ્યમાં કરશે પણ નહીં.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩