Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. १ ईशानेन्द्रस्य देवद्धर्यादिप्राप्तिकारणनिरूपणम् १७७ प्रायश्चित्तः, शुद्धमवेश्यानि मङ्गल्यानि वस्त्राणि प्रवरपरिहितः अल्पमद्दर्घाऽऽभरणालंकृतशरीरो भोजनवेलायाम् भोजनमण्डपे सुखासनवर गतः, ततो मित्रज्ञाति निजक- स्वजन सम्बन्धि-परिजनेन साथ तं विपुलम् अशनं-पानं खाद्यम्-स्वाद्यम् आस्वादयन् विस्वादयन, परिभोगयन्, परिभाजयन परिभुञ्जानो विहरति, उसने स्नान किया ( कयवलिकम्मे ) बलिकर्म किया (कयकोउय मंगल पायच्छित्ते) कौतुक, मंगल, प्रायश्चित्त किये। बाद में (सुद्धपावेसाई मंगलाई स्थाई पवरपरिहिए ) शुद्ध प्रवेशयोग्य मांगलिक वस्त्रों को उसने अच्छी तरह से पहिरा तथा (अप्पमहग्धा भरणालंकियसरीरे) अल्पभारवाले वेशकीमती अलंकारोंसे उसने अपने शरीर को अलंकृत किया । ( भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए) बाद में वह भोजनशाला में गया और वहां पर एक सुन्दर आसन पर बैठ गया । (तएणं मित्तणाइणियगसयणसंबंधोपरिजणेणं सद्धिं) जब मित्रजन, ज्ञातिजन, निजकजन, स्वजन संबंधिजन और परिजन ये सब वहां आ गये तब इन सबके साथ (तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे, परिभुंजेमाणे fares) बैठकर उसने उस अशन, पान, खादिम, और स्वादिम चारों प्रकार के आहार को चखा विशेषरुचिपूर्वक खाया, इस तरह उस आहार को उसने स्वयं जोमा और दूसरों को जिमाया [ कयकोउय
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[सुद्ध
(व्हाए) तेभो स्नान यु [कयवलिकम्मे ] सिउर्भ मंगलप्रायच्छते ] तु, मंगल भने प्रायश्चित्तनी विधि पशुपतावी. पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए ] त्यार या पवित्र स्थानमा प्रवेश रती वमते पांडेश्वायोग्य मांगलिक वस्त्रो तेमनेपडेर्या [ अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे ] तथा हुसा वन्ननना पाए| धणा श्रीमति आभूषण वडे शरीरने राशुगायु [भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए ] त्यार माह तेथे। लोभनमा ने मेड सुंदर आसन पर मेसी गया. [ तरणं मित्तणाइणियगसयण - संबंधि - परिजणेणं सद्धि] न्यारे तेभना मित्रो, ज्ञातिनना, स्वनो भने परिणतो त्यां भावी गया त्यारे ते सौनी साथै मेसीने [तं विडलं असणं गाणं खाइमं साइमं आसाएमाणे वीसाएमाणे परिभाएमाणे, परिभुंजेमाणे विहर] तेथे ते अन्न, पान, मद्य, मने स्वाद्यने याभ्यां विशेष रुचिपूर्व४ माघ, माय उरीने खेडખીજાને જમાડયાં, આ રીતે તે ચારે પ્રકારના આહારા તામિત્રી પાતે જન્મ્યા અને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩