Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.१ कुरुदत्त अनगारस्वरूपनिरूपणम् १२९ परियागं' श्रामण्यपर्यायं चारित्रपर्याय पाउणित्ता' पालयित्वा सम्यक परिपाल्य 'अद्धमासिआए' अर्धमासिकया अधमासेन सम्पद्यमानया 'संलेहणाए' संलेखनया शरीरकषायादि शोषणरूपया 'अत्ताणं' आत्मानम् 'झसेत्ता' जूषित्वा संयोज्य 'तीसं' त्रिंशद् ‘भत्ताई' भक्तानि 'अणसणाई' अनशनानि अनशनैः 'छेदेत्ता' छित्त्वा 'आलोइय पडिकते' आलोचितप्रतिक्रान्तः, आलोचनं प्रतिक्रमणश्च विधाय 'समाहियत्ते' समाधिमाप्तः समाहितः सन् 'कालमासे' कालाऽवसरे 'कालं किच्चा' कालं कृत्वा 'ईसाणे' ईशाने 'कप्पे' कल्पे 'सयंसि विमा तपस्यामें उनका कम नहीं रहा पूरे ६ छह मास उनके लगातार व्यतीत हुए 'सामण्णपरियागं पाणित्ता' इस तरह ६ छह मास तक श्रामण्यपर्यायका पालन कर जब उनका मरण समय बिलकुल नजदिक आ गया- तब उन्होंने 'अद्धमासियाए संलेहणाए' अर्द्धमासिको संलेखना द्वारा 'अत्ताणं झुसेत्ता' आत्माका शोधन किया अर्थात् १५ पंद्रह दिनतक भोजन पानका सर्वथा मन वचन और कायसे परित्याग कर दिया, इस तरह करके उन्होंने 'अलोइयपडिकंते अपने कर्तव्य कर्मकी आलोचना और प्रतिक्रमण किया, इस क्रियाके करनेसे 'समाहिपत्ते' वे समाधिप्राप्त होकर 'कालमासे कालं किच्चा' मृत्यु के अवसरमें मरणको प्राप्त हुए और 'ईसाणे कप्पे सयंसि विमाणंसि' ईशानकल्प मे अपने विमानमें ईशानेन्द्र के सामानिक देवके रूपमें उत्पन्न हुए है। इम विषयमें पूर्ववर्णित तिष्यक देवकी तरह ही इनका भी विशेषता जानना चाहिये । यही बात 'जा तीसए वत्तव्यया सा सव्वेव अपरि. આ રીતે છ માસ સુધી શામણય પર્યાયનું પાલન કરીને ચારિત્ર ધર્મની આરાધના ४शने प्रत्युना समय नही माव्या त्या "अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताण झसेत्ता" १५ ५४२ हिवसनो सथा। ४शन मात्मानु थापन કર્યું એટલે કે ૧૫ દિવસ સુધી ચારે પ્રકારના આહારનો મન, વચન અને याथो त्याग य. माशते १५ ५४२ हिसने सथा। शन"आलोइयपडिकते" मातोयना तया प्रतिभए । “समाहिपत्ते" यितनी २१स्थता (समाथि) प्राप्त भान “कालमासे कालं किच्चो" भृत्युन। २११४२ मावता यम पाया भने "ईसाणे कप्पे सयंसि विमाणंसि" शान ४८५vi पोताना विमानमi शानન્દ્રના સામાનિક દેવ તરીકે ઉત્પન્ન થયા. આ વિષયનું વર્ણન પૂર્વવણિત તિષ્યક દેવના જેવું જ સમજવું. એજ વાત નીચેના સૂત્રપાઠ દ્વારા પ્રકટ કરી છે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩