Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.१ इशानेन्द्रऋद्धिविषये वायुभूतेः प्रश्नः ११७ ' एवं तहेव ' ' अवसेसं तहेव' इति कथनेन शक्रप्रकरणवदेव ईशानेन्द्रप्रकरणमपि विज्ञायते तथापि आंशिकविशेषताऽस्त्येव, उभयोः- साम्याभावे साम्यप्रतिपादनमयुक्तमिति तु नाशङ्कनीयम् आंशिकविशेषसत्वेऽपि उभयसाधारण महर्द्धित्वादिविषयमादाय साम्यस्य सामजस्यसंभवात् , विशेषता चेयम् विषयमें कहा गया हैं वैसाही ईशानेन्द्रकी समृद्धि और विकुर्वणा शक्तिके विषमें भी जानना चाहिये। यहां पर ऐसी आशंका नहीं करना चाहिये कि 'नवरं' इस पद द्वारा जब इन दोनोंमे समानताका निषेध किया गया है तब ‘एवं तहेव अवसेसं तहेव' इन पदोद्धारा इन दोनोंमें समानता कैसे प्रकट की गई है क्यों कि- जहां पर इन दोनोंमें समानता प्रकट की गई हैं वह कितनेक प्रकरण कितनेक भाग में समान है इस बातको लेकर प्रकट की गई है। तात्पर्य कहनेका यह है कि यह प्रकरण ईशानेन्द्रका है और इस प्रकरणकी 'एवं तहेव' इस पाठ द्वारा शक्र के प्रकरण के साथ समानता कही गई है, परन्तु फिर भी इस ईशानेन्द्र प्रकरणमें शक्र के प्रकरण की अपेक्षा कुछ २ विशेषता है ही । अतः जब यह विशेषता मौजूद है तब फिर इसमें समानता क्यों कही गई है ? तो इसका समाधान इस प्रकारसे है कि कितनेक प्रकरण कितनेक भागमें समान होने पर भी कितनेक भागमें भिन्न २ भी होते है तो भी वे समान किसो अपेक्षासे कह दिये जाते हैं । अतः इन दोनोंमें महर्द्धित्व
आदि विषयकों लेकर समानताका सामंजस्य बन जाता है । वह શક્તિ આદિના વિષયમાં જે કહ્યું છે, એ જ પ્રમાણે ઈશાનેન્દ્રની સમૃદ્ધિ, વિક્ર્વણ शति माहिना विषयमा पशु सभा “णवरं" यह द्वारा मनेनी विq। शतिमा જે તફાવત છે, તે પ્રકટ કરવામાં આવ્યું છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે કેન્દ્રના જેટલી વિકુવા શકિત તે ઈશાનેન્દ્ર પણ ધરાવે છે. પણ ઇશાનેન્દ્ર તેના કરતાં કેટલી વિશેષ વિકવણા કરી શકે છે. તે સૂત્રકારે “” પદથી શરૂ થતા સૂત્રપાઠમાં બતાવ્યું છે. શંકા-જે ઈશાનેન્દ્રની વિમુર્વણ શક્તિમાં શકેન્દ્રની વિમુર્વણ શકિત કરતાં विशेषता डाय त"एवं तहेव" ५६ बाते मननी विमा समानता श. भाटे भतावी छ?
समाधान- मनेनी भडासमृद्धि, महाधुति, महास, मायश, मासुम અને મહાપ્રભાવમાં તે સમાનતા છે. વિકુવર્ણ શકિતમાં પણ ઘણે અંશે સમાનતા છે તેથી એ પ્રમાણેના કથનમાં અસંગતતાને પ્રશ્ન જ ઉભું થતું નથી.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩