Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पापोदय और नरक-गमन
किन्तु परिणाम बड़ा बीभत्स निकला । सारा कुटुम्ब कामोन्माद में भानभूल हो गया और पशु के समान विवेक शून्य हो कर माँ, बहिन, बेटी आदि का विवेक त्याग कर व्यभिचार करने लगा । जब उन्माद उतरा और विवेक जागा, तो सभी को अपने दुराचार का भान हुआ । लज्जा और क्षोभ के कारण वे मुँह छिपाने लगे । मुखिया ब्राह्मण को तो अपने और कुटुम्ब के दुष्कृत्य से इतनी ग्लानि हुई कि वह घर छोड़ कर वन में चला गया । वह यह सोच कर राजा के प्रति वैर रखने लगा कि-" राजा ने भोजन में कामोन्माद उत्पन्न करने वाली कोई रसायन मिला कर खिला दी । उसी से यह अनर्थ हुआ । राजा से इस दुष्टता का बदला लेना चाहिए ।"
पापोदय और नरक - गमन
चक्रवर्ती सम्राट ब्रह्मदत्त, राज्यऋद्धि और कामभोग में गृद्ध रहते हुए, पुण्य की पूंजी समाप्त करने लगे । पाप का भार बढ़ रहा था। उधर वह ब्राह्मण सम्राट के प्रति चैरभाव सफल करने का निमित्त खोजता फिरता था । एक दिन उसने देखा कि एक ग्वाला छोटे-छोटे कंकर का अचूक निशाना लगा कर वृक्ष के पत्ते छेद रहा है । उसे इस ग्वाले के द्वारा बदला लेना संभव लगा। उसने ग्वाले से सम्पर्क बढ़ा कर घनिष्टता कर ली । उसे - वशीभूत कर के एक दिन कहा-
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८" नगर में एक आदमी हाथी पर बैठा हुआ हो, उसके मस्तक पर छत्र और दोनों ओर चामर डुलते हों, उसकी दोनों आँखे फोड़ दो। वह मेरा वैरी है । मैं तुम्हें बहुत धन दूँगा |
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वाले की बुद्धि भी पशु जैसी थी। प्रीति और लोभ से वह उत्साहित हो गया और नगर में आया । उस समय सम्राट गजारूढ़ हो कर राजमार्ग पर जा रहे थे । लक्ष्य साध कर ग्वाले ने कंकर मारा और नरेश की दोनों आँखें फूट गई । वे अन्धे हो गए । ग्वाला पकड़ लिया गया। पूछताछ करने पर ब्राह्मण पकड़ा गया और उसका सारा परिवार मार डाला गया । अन्धे बने हुए ब्रह्मदत्त के मन में सारी ब्राह्मण जाति के प्रति उग्र वैर उत्पन्न हो गया । उन्होंने ब्राह्मणों का वध करने का आदेश दिया और उनकी आँखें ला कर देने की मांग की । प्रधान मन्त्री दयालु था । वह श्लेष्माफल ( गूंदों) का थाल भर कर राजा के सामने रखवाता । राजा उसे ब्राह्मणों की आँखें मान कर रोषपूर्वक
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