Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र भाग ३
'यह देव आज से सातवें दिन च्यवेगा और तुम्हारे नगर के निवासी ऋषभदत्त श्रेष्ठि का पुत्र होगा । वह मेरे शिष्य गणधर सुधर्मा का 'जम्बू' नाम का शिष्य होगा । उसे केवलज्ञान होने के बाद इस भरत क्षेत्र की इस अवसर्पिणी काल में दूसरा कोई केवलज्ञानी नहीं होगा ।"
'प्रभो ! इस देव का च्यवन समय निकट है, फिर भी इसके तेज में किसी प्रकार की न्यूनता क्यों नहीं लगती ?"
' इस समय इसका तेज मन्द है । इसके पूर्व अधिक तेज था ।" कहा। इसके बाद भावान् ने धर्मोपदेश दिया ।
देव द्वारा उत्पन्न की गई समस्या का समाधान
श्री हेमचन्द्राचार्य ने आगे लिखा कि--उस समय कुष्ट रोग से पीड़ित -- जिसके हाथ-पांव आदि गल गये हैं और अंगप्रत्यंग से पीप बह रहा है, ऐसा घृणित पुरुष वहाँ आया और भगवान् को वन्दन कर के समीप ही बैठ गया । फिर वह अपने अंग से बहने वाले पीप को हाथ में ले कर भगवान के चरणों पर लगाने लगा। यह देख कर श्रेणिक को घृणा उत्पन्न हुई और क्रोध भी आया, परन्तु वह वहाँ मौन ही रहा। इतने में भगवान् को छींक आई. तब वह कोढ़ा बोला -- " मर जाओ।" राजा अत्यधिक रुष्ट हुआ और अपने सेवक की आज्ञा दी कि - " यह यहाँ से बाहर निकले, तब सैनिकों से इसे पकड़वा लेना । मैं फिर इससे समझँगा ।" इसके बाद महाराजा श्रेणिक को छींक आई, तो वह बोला --'' चिरजं वी हो ।" इसके कुछ काल पश्चात् अभयकुमार को छींक आई, तो कहा--" जीवो या मरो ।" अंतिम छींक कालसौरिक को आई, तब कहा--" न जीओ न मरो ।" वह पुरुष उठ कर जाने लगा, तब सुमटों ने उसे घेर लिना । परन्तु वह क्षणमात्र में दिव्य रूप धारण कर के आकाश में उड़ गया । भगवान् से पूछा । भगवान् ने कहा--" वह देव था । " फिर वह कोढ़ी क्यों बना ?" -- श्रेणिक ने पूछा। भगवान् उप देव का और उसके विचित्र लगने वाले व्यवहार का वर्णन सुनाने लगे ।
राजा चकित हो गया और
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भगवान् ने
* कालसारिक भी वहाँ उपस्थित था ? २ इन प्रसंग से यह तो प्रमाणित होता है कि छीक का शकुन कम-से-कम श्री हेमचन्द्राचार्य के पूर्व से चला श्राहा है।
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