Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 463
________________ ४४६ तीर्थकर चरित्र-भाग ३ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककब मद्रुक ने प्रतिप्रश्न पूछा--"क्या तुम वायु का चलना मानते हो?" अन्य.--"हां, मानते हैं।" म.--"क्या तुम वायु का रूप देखते हो?" अन्य -- 'नहीं वायु का रूप तो दिखाई नहीं देता।" म.---"क्या गन्ध वाले द्रव्य हैं ?" अन्य ० --"हाँ, हैं।" म०--तुम उस गन्ध का रूप देखते हो?" अन्य० - " नही, गन्ध दिखाई नहीं देती।" म०--''अरणी की लकड़ी में अग्नि है ?" अन्य ---"हाँ, है।" म० --" उस लकड़ी में तुम्हें अग्नि दिखाई देती है ? " अन्य --"नहीं।" म.---" समुद्र के उस पार जीवादि पदार्थ हैं ?" अन्य ---"हाँ, है।" म.--"तुम्हें दिखाई देते हैं ?" अन्य :- “नहीं।" म.--"क्या, देवलोक और उसमें देवादि हैं ?" अन्य.--"हाँ, हैं।" म.--"तुमने देखे हैं ?" अन्य - “नहीं, देखे तो नहीं।" म.--' इतने पदार्थ तुम नहीं देखते हुए भी मानते हो, फिर अस्तिकाय क्यों नहीं मानते ? जिन पदार्थों को छद्मस्थ नहीं देख सकता, उनका अस्तित्व भी नहीं माना जाय, तो बहुत-से पदार्थो का अभाव ही मानना पड़ेगा। कहो, क्या कहते हो?" अन्य यूथिक अवाक् हो नि त्तर रहे और लौट गये। मद्रुक भगवान् के समवसरण में गया । वन्दना-नमस्कार किया और धर्मोपदेश सुना । फिर भगवान् ने मद्रुक से पूछा-- “मद्रुक ! तुम से अन्य यथिकों ने प्रश्न पूछ । तुमने उत्तर दिये और वे मौन हो कर लोट गए ?" --"हां, भगवन् ! ऐसा ही हुआ।" --'मद्रुक ! तुने योग्य उत्तर दिये, यथार्थ उत्तर दिये । तुम जानते हो। पग्नु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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