Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 486
________________ ४६९ दुःषम-दुःषमाल का स्वरूप ...................................... आचार्य तक होंगे और संघ को उपदेश देंगे । दुःप्रसह आचार्य तक संघ रूप तीर्थ रहेगा। ये आचार्य बारह वर्ष की अवस्था में दो क्षित होंगे, आठ वर्ष चारित्र पालन कर तेले के तप सहित काल कर के सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न होंगे। उस दिन पूर्वान्ह में चारित्र का विच्छेद, मध्यान्ह में राजधर्म का लोप और अपरान्ह में अग्नि नष्ट हो जायगी। इस प्रकार इक्कीस हजार वर्ष की स्थिति वाला पाचवाँ आरा पूरा होगा। दुःषम-दुःषमकाल का स्वरूप दुःषमकाल समाप्त होते ही इक्कीस हजार वर्ष को 'स्थति वाला 'दुःषम-दुषमा' नामक छठा आरा प्रारम्भ होगा । प्रारम्भ से ही धर्म और न्याय-नीति नहीं रहने के कारण सर्वत्र अशांत और हा-हाकार मचा रहेगा। मनुष्यों में पशुओं के समान माता-पुत्र आदि व्यवहार न ही रहेगा। दिन-रात धूलि यक्त कठार वायु चलती रहेगी। दिशाएँ धूम्र वर्ण वाली होने के कारण भयकर लगेगी । सूर्य में अत्यन्त उष्णता और चन्द्र में अत्यन्त शीतलता होगी। अत्यन्त शीत और अत्यन्त उष्णता के कारण उस समय के मनुष्य अत्यन्त दुःखी रहेंगे। उस समय विरस बने हुए बादलों से क्षार, अम्ल, विष, अग्नि और वज्रमय वर्षा होगी, जिससे मनुष्यो में कास, श्वास, शूल, कुष्ट, जलोदर, ज्वर आदि अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होंगे। जलचर, स्थलचर और नभचर तिर्यंच भी अति दुःखी होगे । क्षेत्र, वन, आराम. लता, वृक्ष और घास नष्ट हो जायेंगे । वैताढ्य गिरि, ऋषभकूट और गंगा तथा सिंधु नदा के अतिरिक्त अन्य सभी पर्वत, खान और नदिय नष्ट हो कर सम हो जायगी। भूमि अंगारे के समान उष्ण राख जैसी होगी, कहीं अत्यधिक धूल तो कहीं अत्यधिक दलदल (की वड़) होगा। मनुष्यों के शरीर कुरूप, अनिष्ट स्पर्श और दुर्गंध युक्त होंगे। अवगाहना एक हाथ प्रमाण होगी। उनकी वाणी कर्कश, निष्ठुर एवं कर्णकटु होगी। वे वैर-विरोधी, क्रोधी, मायो, लोभी, रागी, चपटी नाक वाले, वस्त्र रहित और निर्लज्ज होंगे। वे बढ़े हुए नखकेश वाले, श्वेत-पीत केश वाले, कुलक्षणे भयकर मुख वाले, अति खुजलाने से फटी हुई चमड़ी वाले और कुसंहनन वाले होंगे । वे सम्यक्त्व से प्राय: भ्रष्ट होंगे । पुरुषों की आयु बीस वर्ष और स्त्रियों की सोलह वर्ष होगी। स्त्री छह वर्ष की वय में गभ धारण करेगी और प्रसव अत्यन्त दुःख पूर्वक होगा । वह सोलह वर्ष की आयु में बहुत-से पुत्र-पुत्रियों की माता हो कर वृद्धा हो जायगी। उस समय मनुष्य वैताढय गिरि के नीचे बिलों में रहेंगे । गंगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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