Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 492
________________ वीर-शासन पर भम्भगृह लगा ४७५ कककककककककककककककककककककककककककक ककककककककककककककककककककककका इस प्रकार हे हस्तपाल ! पंचमकाल में कोई गीतार्थ होंगे वे भी धर्म के सत्य स्वरूप को जानते हुए मो भविष्य में अनुकूलता की आशा रखते हुए, लिंगधारी दुराचारियों से दबते हुए मिल कर रहेंगे।" __ भगवान् के मुख से पंचमकाल का स्वरूप जान कर हस्तिपाल राजा संसार से बरक्त हो गया और संयम स्वीकार कर * क्रमशः मुक्त हो गया। वीर-शासन पर भस्मग्रह लगा श्रमण भगवान् महावीर प्रभु का निर्वाण-काल निकट जान कर प्रथम स्वर्ग का स्वामी शक्रन्द्र चिन्तित हुआ। विचार करने पर उसे लगा कि 'निर्वाण-काल के समय भगवान् की जन्म-राशि पर भस्म राशि' नामक महाग्रह आने वाला है, इससे जिनशासन का अनिष्ट होगा।' वह भगवान् के समीप आया और वन्दना कर के निवेदन किया;-- ___ "प्रभो ! आपके जन्मादि कल्याणक का नक्षत्र 'उत्तराफाल्गुनी' है। उस पर 'भस्मराशि' नामक महाग्रह दो हजार वष की स्थिति वाला संक्रमित है। यह आपके धर्मशासन-साधु-साध्वी के लिये अनिष्टकारी होगा। इसलिये यह क्रूर ग्रह हटे, वहाँ तक आपका आयुष्य स्थिर रहे-उतना बढ़ा दें, तो इस कुप्रभाव से आपको परम्परा बच जावेगी।" -"शक्रन्द्र ! तुम्हारे मन में तीर्थ प्रेम है । इसी कारण तुम इस प्रकार सोच रहे हो। तुम जानते हो कि आयु बढ़ाने की शक्ति किसी में नहीं है और धर्मतीर्थ की क्षति तो दुःषम काल के प्रभाव से होगी ही । भस्मग्रह भी इस भवितव्यता का परिणाम है । गौतम स्वामी को दूर किये पावापुरी में अंतिम चातुर्मास का चौथा मास-सातवाँ पक्ष - कार्तिक कृष्णा अमावस्या का दिन था। आने वाली रात्रि में भगवान् का निवण होने वाला था। गणधर भगवान् गौतम स्वामी का भगवान् पर प्रेम अधिक था । इसलिये गौतम को अधिक पाडा न हा और उसका स्नेह-बन्धन टूटने में निमित्त हो सके, इस उद्देश्य से भगवान् ने - * पहले उदयन नरेश को राज्य त्याग कर दीक्षा लेने वाला अन्तिम राजा बताया गया। किन्तु उसके बाद हस्तिपाल की दीक्षा होना, उस कथन को बाधित करता है। हस्तिपाल की दीक्षा का समर्थन टाणांग सूत्र स्थान ८ के उस विधान से भी नहीं होता, जिसमें भगवान महावीर से दीक्षित हुए आठ राजाओं के नाम हैं। उस में हस्तिपाल या पुण्यपाल नाम नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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