Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र-भाग ३ .........................................................
इन्द्रभूतिजी को 'देवशर्मा ब्राह्मण' को प्रतिबोध देने के लिये निकट के गाँव में भेज दिया। गौतम स्वामी वहाँ गये और देवशर्मा को उपदेश दे कर जिनोपासक बनाया और वहीं रात्रि-वास किया।
भगवान की अंतिम देशना
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या पाक्षिक व्रत का दिन था। काशी देश के मल्लवी वश के नौ राजा और कौशल देश के लिच्छवी वंश के नौ राजाओं ने वहीं पौषधोपवास किया था। आज भगवान ने अपनी अंतिम देशना में पुण्यफल विपाक के पचपन अध्ययन और पापफल-विपाक के पचपन अध्ययन तथा अपष्ट व्याकरण के छत्तीस अध्ययन (उत्तराध्य यन) फरमाये।
भगवान् का मोक्ष गमन
भगवान् पर्यङ्कासन से बिराजे और योग निरोध करने लगे। बादर-काय योग में स्थिर रह कर बादर मनोयोग और वचन-योग का निरोध किया। इसके बाद सक्ष्म काययोग में स्थिर रह कर वादर काय-योग को रोका, तत्पश्चात् सूक्ष्म वचन और मनोयोग रोका । शुक्ल-ध्यान के 'सूक्ष्मक्रिगअप्रतिपाति' नामक तीसरे चरण को प्राप्त कर सूक्ष्म काययोग का निरोध किया और 'समुच्छिन्नक्रिया अनिवृत्ति' नामक चतुर्थ चरण को प्राप्त कर पांव लघु अक्षर (अ इ उ ऋ ल) का उच्चारण हो उतने समय तक शैलेशी अवस्था में रह कर शेष चार अघाती कर्मों का क्षय कर के सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त हो गए । उस समय लोक में अन्धकार हो गया और जीवनभर दुःख भोगने वाले नरयिक को भी कुछ समय शांति का अनुभव हुआ।।
भगवान् के निर्वाण के समय 'चन्द्र ' नाम का सम्वत्सर था, 'प्रीतिवर्धन' मास था, 'नन्दीवर्धन' पक्ष था और 'अग्निवेश' दिन था, जिसका दूसरा नाम 'उपशम' है। उम रात्रि का नाम 'देवानन्दा' था । 'अर्च' नामक लव 'शुल्क' नामक प्राण, 'सिद्ध' नमक स्तोक, 'सर्वार्थ सिद्ध' मुहूर्त और 'नाग' नामक करण था । 'स्वाति' नक्षत्र के याग में प्रत्यूष काल (चार घड़ा रात्रि शेष रहते) छठभक्त की तपस्या के साथ भगवान् मोक्ष प्राप्त हुए।
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