Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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देवों ने निर्वाण महोत्सव किया
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केवलज्ञान रूपी सूर्य के अस्त होने पर अन्धकार व्याप्त हो गया । भाव उद्योत के लोप होने पर काशी- कोशल देश के अठारह राजाओं ने विचार किया कि ' दीप जला कर द्रव्य उद्योत करेंगे ।'
प्रश्न - - " भगवन् ! यह घटना क्या सूचित करती है ? "
उत्तर--" अब आगे संयम पालन करना अति कठिन हो जायगा ।"
देवों ने निर्वाण महोत्सव किया
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अनिष्ट सूचक घटना
भगवान् के मोक्ष प्राप्त होते ही दिखाई नहीं दे सके ऐसे कुंथुए इतने परिमाण में उत्पन्न हो गए कि जिनको बचा कर चलना कठिन हो गया था और जो उनके हलन चलन से हो जाने जा सकते थे । ऐसी स्थिति में संयम की निर्दोषिता रखना असंभव जान कर बहुत-से साधु-साध्वियों ने अनशन कर लिया ।
ककककक
भगवान् का निर्वाण होने पर भवनपति से लगा कर वैमानिक पर्यन्त देवेन्द्र अपने परिवार सहित उपस्थित हुए और शोकाकुल हो आँसू बहाते रहे । शक्रेन्द्र भगवान् के शरीर को शिविका में रखा और इन्द्रों ने शिविका उठाई। देवों ने गोशीर्षचन्दन की लकड़ी से चिता रची और उस पर भगवान् के देह को रखा। अग्निकुमार देवों ने अग्नि प्रज्वलित की । वायुकुमार देवों ने वायु चला कर अग्नि विशेष प्रज्वलित की । दाह-क्रिया हो जाने पर मेघकुमार देवों ने क्षीर-समुद्र के उत्तम जल से चिता शान्त की । तत्पश्चात् भगवान् के मुख की दाहिनी और बायीं ओर की ऊपर की दाढ़ा शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र ने ली, चमरेन्द्र और बलीन्द्र ने नीचे की दाढ़ा ली । अन्य इन्द्र दाँत और देव अस्थियाँ ले गये । उस स्थान पर देवों ने स्तूप बनाया ।
गौतम स्वामी को शोक + + केवलज्ञान
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प्रथम गणधर श्री इन्द्रभूतिजी देवशर्मा को प्रतिबोध दे कर लौट कर भगवान् के समीप आ रहे थे कि मार्ग में ही देवों के आवागमन और वार्तालाप से भगवान् का निर्वाण
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