Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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हस्तिपाल राजा के स्वप्न और उनका फल
४७३ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककन
- (२) बन्दर के स्वप्न का फल यह है कि संघ के नायक आचार्य भी चंचल प्रकृति के होंगे। अल्प सत्व वाले प्रमादी और धर्मियों को भी प्रमादी बनाने वाले होंगे। धर्म साधना में तत्पर तो कोई विरले ही होंगे । स्वयं शिथिल होते हुए भी दूसरों को शिक्षा देंगे। जो चारित्र का लगन पूर्वक निर्दोष रीति से पालन करेंगे और धर्म का यथार्थ प्रतिपादन करेंगे, उनकी वे कुशीलिये हँसी करेंगे । हे राजन् ! भविष्य में निग्रंथ प्रवचन से अनजान और उपेक्षक तथा उत्थापक लोग विशेष होंगे।
(३) क्षीरवक्ष के स्वप्न का फल-समद्ध एवं दान करने की रुचिवाले श्रावकों को श्रमण-लिगी ठग अपने चंगुल में पकड़े रहेंगे। कुशी लियों और स्वच्छन्दों की संगति वाले श्रावकों को, सिंह के समान सत्वशाली उत्तम आचार वाले सुसाधु भी उन श्वान के समान दुराचारियों जैसे लगेंगे । उत्तम सुविहित मुनियों के विहार आदि में वे वेशधारी कुशीलिये बाधक हो कर उपद्रव करेंगे । क्षीरवृक्ष के समान श्रावकों को सुसाधुओं की संगति करने से वे कुशीलिये रोकेंगे ।
(४) चौथे स्वप्न में तुमने कौवा देखा । इसका फल यह है कि-संयम धर्म एवं संघ की मर्यादा का उल्लंघन करने वाले धृष्ट-स्वभावी बहुत होंगे । वे अन्य स्वच्छन्दियों का सहयोग ले कर धर्मियों से विपरीताचरण करते हुए धर्म का लोप और अधर्म का प्रचार करेंगे।
(५) शरीर में उत्पन्न कीड़ों से दुर्बल एवं दुःखी बने हुए सिंह के स्वप्न का ल-सिंह वन का राजा है। अन्य पश उससे भयभीत रहते हैं, परंत वह किसी से नहीं डरता। किंतु अपने शरीर में उत्पन्न कीड़ों से ही वह जर्जर एवं दुःखी हो रहा है । इसी प्रकार जिन-धर्म सर्वोपरि है । इसके सिद्धांत अन्य से बाधित नहीं हो सकते । किंतु इसी में उत्पन्न दुराचारी द्रव्य लिगी कीड़े ही इस पवित्र धर्म को क्षत-विक्षत करेंगे।
(६) कमल का उचित स्थान सरोवर है । कमलाकर में उत्पन्न सुन्दर पुष्प विद्रूप हो, उनसे दुर्गन्ध निकले, तो वह घृणित होता है । इसी प्रकार उत्तम कुल में उत्पन्न मनुष्य मिष्ट होना चाहिये । परन्तु भविष्य में प्रायः ऐसा नहीं होगा । बहुत-से कुसंगति में पड़ कर धर्म-शून्य होंगे। कुछ धर्मी होंगे, तो उनका स्थिर रहना कठिन होगा। किंतु उकरड़ी पर कमल खिलने के समान कोई हीन-कुलोत्पन्न मनुष्य भी धर्मी होगा । परंतु वह कल-हीनता के कारण उपेक्षणीय होगा। .
(७) उत्तम बीज को ऊसर भूमि में और सड़े हुए बीज को उपजाऊ भूमि में बोने वाला किसान विवेकहीन होता है । इसी प्रकार विवेक-विकल श्रावक कुपात्र का रुचिपूर्वक दान देंगे और सुपात्र की अवहेलना करेंगे ।
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