Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
४७२
तीर्थंकर चरित्र--भा.३
अधिक काल व्यतीत होने पर कल्पवृक्ष उत्पन्न होंगे। उस समय यह क्षेत्र कर्मभूमि मिटकर भोगभूमि हो जायगी । वे मनुष्य युगलिक होंगे।
"इसके बाद 'सुषम' नामक पाँचवाँ और 'सुषम-सुषमा' नामक छठा आरा क्रमशः तीन कोटाकोटि और चार कोटा-कोटि सागरोपम प्रमाण होगा, जो अवसर्पिणी के दूसरे और पहले आरे के समान भोगभूमि का होगा।"
जम्बूस्वामी के साथ ही केवलज्ञान लुप्त हो जायगा
श्रमण भगवान् से गणधर सुधर्म स्वामी ने पूछा-“भगवन् ! केवल ज्ञान रूपी सूर्य कब और किस के पश्चात् अस्त हो जायगा ?"
-"तुम्हारे शिष्य जम्ब अन्तिम केवली होंगे। उनके पश्चात् भरत-क्षेत्र में इस अवसर्पिणी में किसी को भी केवलज्ञान नहीं होगा। और उसी समय से परम अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, पुलाक-लब्धि, आहारक शरीर, क्षपक श्रेणी, उपशमश्रेणी, जिनकल्प, परिहारविशुद्ध चारित्र, सूक्ष्म-सम्पराय चारित्र, यथाख्यात चारित्र और मोक्ष प्राप्ति का विच्छेद हो जायगा।"
हस्तिपाल राजा के स्वप्न और उनका फल अपापापुरी में भगवान् का अन्तिम चातुर्मास था। हस्तिपाल * राजा की रज्जुकसभा (लेखन शाला) + में भगवान् विराज रहे थे । वहाँ के राजा हस्तिपाल को एक रात्रि में आठ स्वप्न आये । उसने भगवान् से अपने स्वप्नों का फल बतलाने का निवेदन किया। वे स्वप्न इस प्रकार थे;-१ हाथी २ बन्दर ३ क्षीरवृक्ष ४ काकपक्षी ५ सिंह ६ कमल ७ बीज और ८ कुंभ । भगवान् ने फल बतलाते हुए कहा;
(१) प्रथम स्वप्न में तुमने हाथी देखा, उसका फल भविष्य में आने वाले 'दुषम' नामक पांचवें आरे में श्रावक-वर्ग क्षणिक समृद्धि में लुब्ध हो जायगा। आत्म-हित का विवेक भुला कर वे हाथी के समान गृहस्थ जीवन में ही रचे रहेंगे। यदि दुःखी जीवन से ऊब कर कोई प्रव्रज्या ग्रहण करेगा, तो कुसंगति के कारण संयम छोड़ देगा अथवा कुगोलिो हो जावेंगे । निष्ठापूर्वक संयम का पालन करने वाले तो विरले ही होंगे।
कहीं-कहीं राजा का नाम 'पुण्यपाल' भी लिखा है, परन्तु कल्पसूत्र में "हस्तिपाल" नाम है।
+ रज्जुक सभा का अर्थ अर्धमागधी कोश में 'पुरानी दानशाला' भी किया है। यह दान = कर प्राति का स्थान था, उस जो समय रिक्त था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org