Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 484
________________ ककककक ककककककक नागणधरों की मुक्ति xविष्यवाणी प्रश्न पूछूं। यदि वे मेरे प्रश्नों का यथार्थ उत्तर देंगे तो मैं उन्हें वन्दन - नमस्कार करूँगा । और वे उत्तर नहीं दे सकेंगे, तो मैं उन्हें निरुत्तर करूँगा । इस प्रकार विचार कर अपने एक सौ शिष्यों के साथ आया । भगवान् से अपने प्रश्नों का यथार्थ उत्तर पा कर वह संतुष्ट हुआ + और भगवान् का उपासक हो गया । ( भगवती १८ - १० ) Jain Education International ४६७ कककककक कककककककककककककककककक कक नौ गणधरों की मुक्ति श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के नौ गणधर -- १ श्री अग्निभूतिजी २ वायुभूतिजी ३ व्यक्तजी, ४ मंडितपुत्रजी, ५ मौर्यपुत्रजी, ६ अकम्पितजी, ७ अचलभ्राताजी ८ मेतार्यजी और ९ प्रभासजी, मुक्ति प्राप्त कर चुके थे । अब श्री इन्द्रभूतिजी मुधर्मस्वामीजी ये दो गणधर शेष रहे थे । ܐ भविष्यवाणी दुःषम काल का स्वरूप गणधर भगवान् इन्द्रभूतिजी ने भगवान् से पूछा --" भगवन् ! भविष्य में होने वाले दुःषम और दुःषमादुषम काल में भरत क्षेत्र में किस प्रकार के भाव वर्तेगे ?" - " हे गौतम ! मेरे निवार्ण के तीन वर्ष और साढ़े आठ मास पश्चात् पाँचव 'दुःषम काल प्रारम्भ होगा । li तीर्थंकर की विद्यमानता में ग्रामों और नगरों से व्याप्त भूमि धन धान्यादि से परिपूर्ण समृद्ध स्वर्ग के समान होती है । ग्राम नगर के समान, नगर स्वर्गपुरी जैसे, कुडुम्बो - गृहपति - - राजा जैसे, राना कुबेर जैसे, आचार्य चन्द्रमा के समान, पिता देवतुल्य, सामु माता जैसी और ससुर पिता तुल्य होते हैं । लोग सत्य, शीलवंत, विनीत, धर्म-अधर्म के ज्ञाता, देव गुरु पर भक्तिवंत, स्वपत्नी में संतुष्ट होते हैं । उनमें विद्या विज्ञान और + इसका वर्णन इसी पुस्तक के पृ. ८५ से हुआ है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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