Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र-भाग ३ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर
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से आहार-पानी तो मिलता ही कैसे ? कभी किसी ने कुछ आहार दे दिया, तो पानी नहीं मिला, पानी मिला, तो आहार नहीं । वे सभी परीषह शांतिपूर्वक सहन करने लगे। इस प्रकार छह मास पर्यंत सहते हुए और निष्ठापूर्वक संयम-तप की आराधना करते हुए छह मास में ही समस्त बन्धनों को नष्ट कर सिद्ध भगवान् हो गए।
बाल-दीक्षित राजकुमार अतिमुक्त
पोलासपुर नगर के राजा विजय सेन के श्रीमती रानी से अतिमुक्त कुमार का जन्म हुआ था । बालकुमार लगभग ७ वर्ष के थे और बालकों के साथ खेलते-रमते सुखपूर्वक बढ़ रहे थे। उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पोलासपुर पधारे और श्रीवन उद्यान में बिराजे । गगधर महाराज गौतम स्वामी अपने बेले के पारणे के लिए भिक्षार्थ नगर की ओर चले । वे इन्द्रस्थान के (जहाँ राजकुमार बहुत चे बालक-बालिकाओं के साथ खेल रहे थे) निकट हो कर निकले । अतिमुक्त कुमार को दृष्टि गणधर महाराज पर पड़ी। सद्य फलित होने वाले उपादान को उत्तम निमित्त मिल गया। राजकुमार गणधर भगवान् की ओर आकर्षित हुए और निकट आ कर पूछा--
"महात्मन् ! आप कौन हैं और किस प्रयोजन से कहाँ जा रहे हैं ?"
--"देव-प्रिय ! मैं श्रमण निग्रंथ हूँ। आत्म-कल्याण के लिये मैंने निग्रंथ प्रव्रज्या अंगीकार की है। अहिंसादि पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, सत्रह प्रकार का संयम, रात्रि-भोजन त्याग आदि की आराधना करता और बेले-बेले तपस्या करता हुआ विचर रहा हूँ। आज मेरे बेले के तप का पारणा है, सो आहार के लिए जा रहा हूँ"-- गौतम स्वामी ने कहा।
--"चलिये, मैं आपको भिक्षा दिलवाता हूँ"--कह कर राजकुमार ने गणधर महाराज के हाथ की अंगुली पकड़ ली और चलने लगा। गौतम स्वामी को ले कर कुमार राज्य-महालय में आया । गणधर महाराज को देख कर महारानी श्रीमती प्रसन्न हुई और आसन से उठ कर स्वागतार्थ आगे आई । गणधर भगवान् को वन्दना-नमस्कार किया, आहार-पानी बहराया और आदर सहित विजित किया।
राजकुमार ने गणधर महाराज से पूछा--"महात्मन् ! आपका घर कहाँ है, अप कहाँ रहते हैं ?"
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