Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 481
________________ ४६४ तीर्थंकर चरित्र - भा. ३ Fb Fes*peehoses FF FF FF FF FF FF FF FF FF FF ==*#* दिया । धात्री ने नहीं गिरा । बड़ी कठिनाई से प्रसव हुआ । रानी ने जब पुत्र को जन्मान्ध आदि देखा, तो धात्री माता को उसे फेंक आने का आदेश राजा से कहा । राजा ने आ कर रानी से कहा - " यदि तुम इस प्रथम पुत्र को फिकवा दोगी, तो बाद में तुम्हारे होने वाले गर्भ स्थिर नहीं रहेंगे । इसलिये इसका गुप्त रूप से भूघर में पालन करो ।" यही वह पुत्र है । यहाँ छब्बीस वर्ष की आयु में मर कर सिंह होगा । तदनन्तर नरक-तिर्यञ्च के भव करता हुआ लाखों भवों तक जन्म-मरणादि दुःख भोगता रहेगा । अन्त में मनुष्यभव में साधना कर के मुक्ति प्राप्त करेगा ।" लेप गाथापति - राजगृह नगर के नालन्दा उपनगर में 'लेप' नाम का एक महान् सम्पत्तिशाली गाथापति रहता था । वह-वैभव और सामर्थ्य में बढ़ाचढ़ा था । उसका व्यापार बढ़ा हुआ था । दास-दासी भी बहुत थे । प्रचुरमात्रा में उसके यहाँ भोजन बनता था । पशुधन भी प्रचुर था । बहुत से लोग मिल कर भी उसे डिगा नहीं सकते थे । धर्म-धन से भी वह धनवान् था । निर्ग्रथ प्रवचन में उसकी परिपूर्ण श्रद्धा थी । कोई पूछता तो वह निर्ग्रय-प्रवचन को ही अर्थ- परमार्थ कहता था, शेष सभी को अनर्थ बताता था । श्रावक के व्रतों का वह निष्ठापूर्वकपालन करता था । अष्टमी चतुर्दशी और पक्खी पर्व पर वह परिपूर्ण पौषध करता था । निर्ग्रथधर्म उसके रक्त-मांस ही नहीं, अस्थि और मज्जा तक व्याप्त था । धर्म- प्रेम से वह अनुरक्त रहता था । वह जीव अजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता हीं नहीं, रहस्यों का भी वह ज्ञाता था । उसके विशुद्ध चारित्र की जनता पर छाप थी। वह सभी के लिये विश्वास का केन्द्र था । लेप गाथापति के नालन्दा के बाहर ईशान कोण में 'शेषद्रव्या' नामक उदकशाला (जलगृह ) थी, जो अनेक स्तंभों आदि से भव्य तथा दर्शनीय थी। उस उदकशाला के निकट 'हस्तियाम' नामक उपवन था । गौतम स्वामी और उदक पेढालपुत्र अनगार हस्तियाम उपवन के किसी गृहप्रदेश में भगवान् गौतम स्वामी विराजमान थे । उस समय भगवान् प र्श्वनाथ स्वामी के सन्तानीय मेदार्य गोत्र य 'उदक पेढाल पुत्र' नामक निग्रंथ, गौतम भगवान् के निकट आये और पूछा -- प्रश्न- " आयुष्मन् गौतम ! आपके प्रवचन के अनुयायी 'कुमारपुत्र' नामक अनगार, श्रावकों को जो त्रस प्राणियों की घात का प्रत्याख्यान कराते हैं, वह दुष्प्रत्याख्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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