Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 462
________________ वादविजेता श्रमणोपासक मद्रुक वन्दना की। धमोपदेश सुना । धर्मोपदेश पूर्ण होने पर पुष्कलो आदि श्र ण पासक शंखजी के निकट आये और बोले; - ___ "महानुभाव ! आपने हमें भोजन बनाने का कहा और खा-पी कर पक्खी का पौषध करने की प्रेरणा की । हमने आपके कथनानुसार भोजन बनाया, परन्तु आप स्वयं पषधशाला में जा कर (प्रतिपूर्ण) पौषध कर के बैठ गये । आपने हमारे साथ यह कैसा व्यवहार किया ? क्या इससे हम सब का अपमान नहीं हुआ ?" "आर्यों ? तुम शंख श्रमणोपासक की निन्दा एवं असमान मत करो। शंख धर्मानुरागी, दृढ़धर्मी, प्रियधर्मी है । इसने तुम्हारा अपमान करने के लिये नहीं, भावोल्लास में प्रतिपूण पौषध किया और सुदर्शन जागारका युक्त रहा '--भगवान् ने श्रमणोपासकों का समाधान किया । श्रमणोपासकों ने भगवान् की वन्दना की और शंखजी के निकट आ कर क्षमायाचना की। (भगवती सूत्र शतक १२ उद्देशक १) . वादविजेता श्रमणोपासक मदुक राजगृह के गुणशील उद्यान के निकट काल दायी, सेलोदायी आदि बहुत-से अन्ययूथिक रहते थे और नगर में 'मद्रुक' नामक श्रमणापासक भी रहता था। वह ऋद्धिमंत प्रभावशाला एवं शक्तिशाली था। निग्रंथ-प्रवचन का ज्ञाता था। तत्त्वज्ञ था और दृढ़श्रद्धा वाला था । श्रमण भगवान महावीर स्वामा राजगृह के गुणशोल चैत्य में बिराजते थे। भगवान् का आगमन सुन कर मद्रुक प्रसन्न हुआ। वह भगवान् की वन्दना करने घर से निकल कर गुणशील उद्यान की ओर जा रहा था। वह अन्ययूथिकों के आश्रम के निकट हो कर जा रहा था। उसे अन्य यूथिकों ने देखा और परस्पर परामर्श कर अविदितअसंभव लगने वाले तत्त्व के विषय में पूछने का निश्चय किया। वे अपने स्थान से चल कर मद्रुक श्रमणोपासक के निकट आये और पूछा-- - "हे मद्रुक ! तुम्हारे धर्माचार्य पाँच अस्तिकाय के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं, क्या तुम अस्तिकाय बता सकते हो ? " --"वस्तु का कार्य देख कर, कारण के अस्तित्व का बोध होता है । बिना कार्य के कारण का ज्ञान नहीं होता"--मद्रुक ने कहा। --" मद्रुक ! तुम कैसे श्रमणोपासक हो, जो वस्तु को न तो जानते हो, न देखते हो, फिर भी मानते हो--अन्ध विश्वासी"---अन्ययूथिक ने आक्षेप पूर्वक कहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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