Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र - भा. ३
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अर्जुन की विडम्बना + राजगृह में उपद्रव
राजगृह में 'अर्जुन' नाम का मालाकार रहता था। वह धन धान्यादि से परिपूर्ण था । ' बन्धुमती' उसकी भार्या थी - सर्वांगसुन्दरी कोमलांगी । राजगृह के बाहर अर्जुन की एक पुष्पवाटिका थी। जो सुन्दर आकर्षक एवं रमणीय थी । उसमें विविधवर्ण के सुगन्धित ल लगते थे । पुष्पोद्यन के निकट ही एक यक्ष का मन्दिर था । यक्ष की प्रतिमा 'मुद्गरपाण यक्ष' के नाम से प्रसिद्ध थी । वह यक्ष पुरातन काल से, अर्जुन के पूर्वजों से श्रद्धा का केन्द्र था, पूजनीय अर्चनीय था । यक्ष प्रतिमा के सान्निध्य था । उसकी सच्चाई की प्रसिद्धि थी । प्रतिमा के हाथ में एक हजार पल प्रमाण भार का मुद्गर था । अर्जुन मालाकार बालपन से ही उस यक्ष का भक्त था । वह प्रतिदिन वाटिका में आता, पुष्प एकत्रित कर के चंगेरी में भरता, उनमें से अच्छे पुष्प लेकर श्रद्धापूर्वक यक्ष को चढ़ाता' प्रणाम करता और फूलों की डलिया ले कर बाजार में बेचने ले जाता ।
राजगृह में एक 'ललित' नामकी मित्र मण्डली थी, जिसमें छह युवक सम्मिलित थे । इस मित्र गोष्ठी ने कभी अपने कार्य से महाराजा को प्रसन्न किया होगा । जिससे महाराजा श्रेणिक ने इन्हें 'यथेच्छ विचरण' एवं 'दण्डविमुक्ति' का वचन दिया था । यह ललितगोष्ठी समृद्ध थी और इच्छानुसार खान-पान, खेल क्र ड़ा एवं भोग-विलास करती हुई जीवन व्यतीत कर रही थी। इन पर किसी का अंकुश नहीं था । राज्य-बल से निर्भय होने के कारण इनकी उच्छृंखलता बढ़ी हुई थी । यह मण्डली मनोरंजन में लगी रहती थी ।
राजगृह में कोई सार्वजनिक उत्सव का दिन था । उस दिन पुष्पों का विक्रय बहुत होता था । अर्जुन प्रातःकाल उठा, पत्नी को साथ ले कर पुष्पोद्यान में गया लौर पुष्प चुन कर एकत्रित करने लगा। उसी समय वह ललित - मण्डली भी उस उद्यान में आई और वाटिका की शोभा देखती हुई घूमने लगी । उनकी दृष्टि बन्धुमती पर पड़ी। उसके रूप-यौवन को देख कर उनके मन में पाप उत्पन्न हुआ । उन्होंने बन्धुमती के साथ भोग करने का निश्चय किया और प्राप्त करने की योजना बना ली। वे छहों रस्सी ले कर मन्दिर में घुसे और किवाड़ की ओट में दोनों ओर छुप कर खड़े हो गए। अर्जुन पत्नी सहित मन्दिर में आया । प्रतिमा को पुष्प चढ़ाये और प्रणाम करने के लिए घुटने टेक कर मस्तक झुकाया । उसी समय छहों मित्र किंवाड़ों के पीछे से निकल कर अर्जुन पर टूट पड़े । उसे रस्सी के दृढ़ बन्धनों से बाँध कर एक ओर लुढ़का दिया और बन्धुमती को पकड़ कर उसके साथ व्यभिचार करने लगे ।
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