Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र भाग ३
उत्तर- " भागते हुए अश्व को में श्रुत रूप रस्सी से बाँध कर रखता हूँ । इसलिये वह उन्मार्ग पर जा हो नहीं सकता और सुभाग पर ही चलता है । "L 'आप अश्व किसे समझते हैं ?
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-" मन ही दुष्ट भयंकर और साहसी घोड़ा है, जो चारों ओर भागता है । में धर्म-शिक्षा मे उसे सुधरा हुआ जातिवान अश्व बना कर निग्रह करता हूँ ।" ८ प्रश्न - " लोक में कुमार्ग बहुत हैं, जिन पर चल कर जीव दुःखी होते हैं। किन्तु आप उन कुमार्गों पर जाने -पथ भ्रष्ट होने से कैसे बचते हो ?"
उत्तर- " हे महामुनि ! मैं सन्मार्ग और उन्मार्ग पर चलने वालों को जानता हूं । इसलिए में सत्पथ से नहीं हटता । "
- " कौन-से हैं वे सुमार्ग और कुमार्ग ?"
-" जितने भी कुप्रवचन को मानने वाले पाखण्डी हैं, वे सभी उन्मार्गगामी हैं । सुमार्ग तो एकमात्र जिनेश्वर भगवंत कथित ही है और यही उत्तम मार्ग है ।'
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९ प्रश्न - " पानी के महाप्रवाह में बहते हुए प्राणियों के लिये, शरण देकर स्थिर रखने वाला द्वीप आप किसे मानते हैं ? "
उत्तर- "समुद्र के मध्य में एक महाद्वीप है, उस द्वीप पर पानी का प्रवाह नहीं पहुँच सकता । उस द्वीप पर पहुँच कर जीव सुरक्षित रह सकते हैं ।"
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'वह शरण देने वाला द्वीप कौनसा है ?"
-" जन्म-जरा और मृत्यु रूपी महाप्रवाह में डूबते हुए प्राणियों के लिये एक धर्मरूपी द्वीप ही उत्तम शरण दाता है ।"
१० प्रश्न- " महानुभाव गौतम ! महाप्रवाह वाले समुद्र में आप ऐसी नौका में बैठे हैं, जो विपरीत दिशा में जा रही है । कहिये, आप उस पार कैसे पहुँचेंगे ?"
उत्तर- " जिस नौका में छिद्र हैं, वह पार नहीं पहुँचा सकती । परन्तु जो छिद्ररहित है, वही पार पहुँचा सकती है ।"
- " वह नाव कौनसी है ?"
- " यह शरीर नाव रूप है, जीव है उसका नाविक और संसार है समुद्र रूप । जो महर्षि हैं, वे शरीर रूपी नौका से संसार रूपी समुद्र को तिर कर उस पार पहुँच
"
जाते हैं ।
११ प्रश्न - " संसार में घोर अन्धकार व्याप्त है । उस अन्धकार में भटकते हुए प्राणियों को प्रकाश देने वाला कौन है ?"
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