Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 466
________________ केशी-गौतम मिलन सम्वाद और एकीकरण ............................................................... पाने के लिए तत्पर हैं । कहिये ऐसे शत्रुओं पर आपने किस प्रकार विजय प्राप्त की ?" उत्तर-“एक को जीतने से पाँच जीत लिये और पाँच को जीत कर दस को जीता। दस को जीतने के साथ ही मैने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली।" पुनः प्रश्न - "वे शत्रु कौनसे हैं ?" उत्तर-अपना निरकुश आत्मा ही एक बड़ा शत्रु है । इसके साथ कषाय और इन्द्रियों के विषय शत्रु हैं । इन्हें जीत कर मैं सुखपूर्वक विचर रहा हूँ।" ४ प्रश्न-“महाभाग ! संसार में लोग बन्धनों में बन्धे हुए दिखाई देते हैं । आप उन बन्धनों से मुक्त हो कर लघुभूत (हलके) कैसे हो गये ?" उत्तर-"मैने उन बन्धनों को काट फेंका । अब मैं लघुभूत = भार-मुक्त हो कर विचर रहा हूँ। स्पष्टार्थ प्रश्न-"वह पाश = बन्धन कौनसा है ?" उत्तर-"रागद्वेषादि और तीव्र स्नेह, भयंकर बन्धन है । इन बन्धनों को काट कर मैं भारमुक्त हो गया हूँ।" ५ प्रश्न-"हृदय में उत्पन्न विषली लता भयंकर फल देती है । आपने उस विषवल्ली को कैसे उखाड़ फेंका ?" उत्तर-"मैंने उस विषलता को जड़ से उखड़ कर फेंक दिया। अब मैं उसके विष से मुक्त हूँ ।' -“कौनसी है वह विष लता ?" - "तृष्णा रूपा विषलता भव-भ्रमण रूप भयंकर फल देने वाली है। मैने उसे समूल उखाड़ फेंका। अब मैं सुखपूर्वक विचर रहा हूँ।" ६ प्रश्न-"शरीर में भयंकर अग्नि है और शरीर को जला रही है । आपने उस अग्नि को शान्त कैसे किया ?" उत्तर-"महामेघ से बरसते हुए पानी से मैं अपनी आग को सतत बुझाता रहता हूँ। वह बझी हुई अग्नि मुझे नहीं नहीं जलाती।" -“वह अग्नि कौनसी है ?" -"कपाय रूपो अग्नि है । श्रुत शील और तप रूपी जल है । मैं श्रुतधाग से अग्नि को शांत कर देता हूँ. इसलिये वह मुझे नहीं जला सकती।" ७ प्रश्न-“गौतम ! महा-दुष्ट, साहसी और भयंकर अश्व पर आप आरूढ़ हैं, वह दृष्ट अश्व आपको उन्मार्ग में नहीं ले जाता है क्या?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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