Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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के शी-गौतम मिलन सम्वाद और एकीकरण
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जो मनुष्य जानता नहीं, फिर भी उत्तर देता है, तो वह असत्य होता है । असत्य उत्तर मे वह अहितों और अरहत-प्ररूपित धम की आशातना करता है । तुमने यथार्थ उतर दिय है।" मद्रुक भगवान् को वन्दना कर के लौट गया ।
गौतम स्वामी ने पूछा--"भगवन् ! मदक निग्रंथ-प्रव्रज्या अंगीकार करेगा ?"
"नहीं, गौतम ! वह श्रावक धम का पालन कर देवगति प्राप्त करेगा । देव भव में च्यव कर महाविदेह में मनुष्य-जन्म पाएगा। वहाँ निग्रंथ धर्म की आराधना कर के मुक्त हो जायगा ।" (भगवती सूत्र शतक १८ उद्देशक ७)
केशी-गौतम मिलन सम्वाद और एकीकरण
तीर्थकर भगवान् पाश्वनाथ स्वामी के शिष्य महायशस्वी के शी कुमार श्रमण श्रावस्ति नगरी पधारे और तिन्दुक उद्यान में विराजे । उसी समय श्रमण भगवान् महावीर प्रभु के प्रथम गणधर ग तमस्वामीजी भी श्रावस्ति पधारे और कोष्ट क उद्यान में बिराजे । दोनों महापुरुष एक ही नगरी में भिन्न-भिन्न स्थानों पर रहते हुए एक-दूसरे की उपस्थिति से अव. गत हुए । दोनों के साथ शिष्य-वर्ग भी था ही । दोनों महापुरुषों को कोई सन्देह नहीं था। परन्तु उनके शिष्यों में प्रश्न उठ खड़ा हुआ--"जब दोनों परम्पराओं का ध्येय एक है, तो भेद क्यों है, अभेद क्यों नहीं ?" एक चार याम रूप धम मानते हैं, तो दूसरे पाँच महाव्रत रूप । एक अचेलक-धर्मी हैं, तो दूसरे प्रधान वस्त्र वाले हैं ? जब द नो परम्परा मोक्षसाधक है और एक ही आचार विचार रखते हैं, तो इन दा बातों में भेद का कारण क्या है ? क्या यह भेद मिट नहीं सकता?"
शिष्यों की भावना जान कर दोनों महर्षियों ने मिलने का विचार किया । गणधर भगवान् गौतम स्वामीजी ने महर्षि केशीकुमार श्रमण के ज्येष्ठ कुल का विचार कर स्वयं ही अपने स्थान से चल कर तिन्दुक उद्यान में पधारे । गौतम स्वामी को अपनी ओर आते देख कर केशीकुमार श्रमण ने भक्ति एवं सम्मान सहित गौतम स्वामी का स्वागत किया। दर्भ, पलाल और त्रण का आसन प्रदान किया। दोनों प्रभावशाली भव्य महर्षि समान आसन पर बिराजते हुए ऐसे सुशोभित हो रहे थे जैसे--चन्द्रमा और सूर्य एक साथ
___पूर्ववर्ती भगवान् पार्श्वनाथजी की परम्परा के कुल के । वैसे श्री केशीकुमार श्रमण श्री गौतमस्वामीजी से दीक्षा में भी ज्येष्ठ थे।
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