Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 468
________________ केशी - गौतम मिलन संवाद और एकीकरग FFFFFFFFFFFFFFFFFFFF उत्तर- " समस्त लोक को प्रकाशित करने वाला निर्मल सूर्य उदय हुआ है । वही प्राणियों को प्रकाशित करेगा ।" " - " वह सूर्य कौनसा है ? - जिहोंने ज्ञानावरणादि कर्मरूप अन्धकार को क्षय कर दिया है, ऐसे सर्वज्ञ जिनेश्वर रूपी सूर्य का उदय हुआ है। यही सवज्ञ सूर्य सभी प्राणियों को प्रकाश प्रदान करेगा ।" १२ प्रश्न-“ संसार में सभी जीव शारीरिक और मानसिक दुखों से पीड़ित हो रहे हैं । इन जीवों के लिये भय एवं उपद्रव रहित और शान्ति प्रदायक स्थान कौन-सा है ?" उत्तर-"लोक के अग्रभाग पर एक ऐसा निश्चल शाक्त स्थान है, जहां जन्मजरा-मृत्यु और रोग तथा दुःख नहीं है । किन्तु उस स्थान पर पहुँचना कठिन है ।" 'वह स्थान कौन-सा है ? " - " वह निर्वाण, अव्याबाध, सिद्धि लोकाय, क्षेम शिव और अनाबाध है । इसे महर्षि ही प्राप्त कर सकते हैं । वह स्थान शास्वत निवास रूप है । लोक के अग्रस्थान पर है । इस स्थान को प्राप्त करना महा कठिन है। जिन निर्मल आत्माओं ने इस स्थान को प्राप्त कर लिया है, वे फिर किसी प्रकार का सोच-विचार या चिन्ता नहीं करते । वे वहाँ शाश्वत निवास करते हैं ।" I गौतमस्वामी के उत्तर से केशीकुमार श्रमण संतुष्ट हुए । उन्होंने कहा " 'महर्षि गौतम ! आपकी प्रज्ञा अच्छी है । मेरे सन्देह नष्ट हो गये हैं । हे संशयातीत ! हे समस्त श्रुत- महासागर के पारगामी ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।" गौतम गणधर को नमस्कार कर के केशीकुमार श्रमण ने पाँच महाव्रत रूप चारित्रधर्म भाव से ग्रहण किया । क्योंकि प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के मार्ग में यही धर्म सुखप्रद है । केशीकुमार श्रमण और गौतमस्वामी का वह समागम नित्य सदैव के लियहो गया। इसे श्रुत और शील का सम्यम् उत्कर्ष हुआ और मोक्ष साधक अर्थों का विशिष्ट निर्णय हुआ । इस सम्वाद को सुन कर उपस्थित जन परिषद् भी संतुष्ट हुई और सन्मार्ग पाई। परिषद् ने दोनों महापुरुषों की स्तुति की। ( उत्तराध्ययसूत्र अ० २३ ) Jain Education International ני ४५१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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