Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र-भा. ३
मूर्तियाँ आदि सुसज्जित थे । उस चित्रसभा में नृत्य करने वाले और नाट्यकार भी रखे थे, जो लोगों का मनोरञ्जन करते थे, कोई कथा भी सुनाते थे । दक्षिणी उद्यान में भोजनशाला बनाई, जिसमें भिखारियों को भोजन दिया जाता था। पश्चिमोद्यान में औषधालय बनाया, जिसमें कुशल वैद्य नियुक्त किये। वहाँ रोगियों को औषधी एवं पथ्य दे कर रोग-मुक्त किया जाता और उत्तर की ओर एक अलंकार सभा बनाई, जिसमें अनेक अलंकारिक रख कर लोगों के केशकर्तन, मर्दन, अभ्यंगन एवं विलेपन करके लोगों को सुख पहुँचाया जाने लगा और नन्द श्रेष्ठि स्वयं भी स्नानादि कर तथा नाटकादि देख कर लुब्ध रहने लगा।
___ नन्दा-पुष्करिणी में बहुत-से पथिक, कठियारे, घसियारे, लक्कड़हारे, आते, नहाते, धोते, खाते, पोते, नाटकादि देखते और नन्द-मनिहार की प्रशंसा करते । नन्द की प्रशंसा चारों ओर होने लगी। नन्द-श्रेष्ठी अपनी प्रशंसा सुन कर फूल जाता। उसकी प्रसन्नता का पार नहीं रहता।
कालान्तर में अशुभ-कर्म के उदय से नन्द के शरीर में भयानक रोग उत्पन्न हुआ। अनेक प्रकार के उपचार हुए, किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। वह पुष्करिणी में अत्यंत मूच्छिन रहता हुआ मृत्य् पा कर उसी में मेंढ़कपने उत्पन्न हुआ। जिस प्रकार धन में मूच्छित, धन पर उत्पन्न होता हैं, रत्नों और पुष्करणियों में गृद्धदेव उन्हीं में उत्पन्न होते है, उसी प्रकार नन्द, गृद्धता के कारण पुष्करिणी में मेंढ़क हुआ। लोग पूर्व की भांति पुष्करिणो पर नन्द की प्रशसा करते रहते थे। मेंढक के कानों में भी प्रशंसा के शब्द पड़ । परिचित स्थान तो था ही, परिचित शब्दों ने उसे आकर्षित किया। हृदय में ऊहापोह मचा और क्षयोपशम बढ़ते ही जातिस्मरण हो गया। उसने अपना पूर्वभव देखा। उसे धर्मत्याग और यश कीति तथा जलाशय में अत्यंत आसक्ति रूप अपनो भल दिखाई दा। वह पछताया और धर्मसाधना करने के लिए तत्पर हो गया । उसने पूर्व पाले हए श्रावक व्रत पून: स्वीकार किये और बले-बेले तपस्या करने लगा। उसने निश्चय किया कि पारणा भी मैं लोगों के उबटन आदि से करूँगा और जल भी अचित्त हुआ पिऊँगा । वह मनोयोग पूर्वक साधना करने लगा।
कालान्तर में भगवान् राजगृह के गुणशील उद्यान में पधारे । नगर में भगवान् के पदार्पण से हर्ष व्याप्त हो गया। पुष्करिणा पर आने वाले लोगों ने भगवान् पदार्पण की चर्चा की। मेंढक ने सुना, ता हर्षित हुभा और वह भी जलाशय से निकल कर भगवान् को वन्दन करने जाने लगा । महाराजा श्रेणिक और नगरजन भी भगवद्वदन करने जा रहे थ ।
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