Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 452
________________ अब अरमणीय मत हो जाना များနိုင်ကြောင်း*FာFFFFFFFFFF पर्युपासना करना और निर्दोष आहारपानी, स्थान, पीठफलकादि ग्रहण करने के लिये निवेदन करने से उनको विनय भक्ति होती है ।" - राजन् ! तुम विनयाचार जानते हो, फिर भी मेरे साथ किये हुए प्रतिकूल व्यवहार का परिमाजन किये बिना ही जाने लगे ? - " भगवन् ! मैंने सोचा है कि कल प्रातःकाल अपनी रानियों और परिवार सहित श्रीचरणों की वन्दना कर के अपराध की क्षमा याचना करूँ ।" अब अरमणीय मत हो जाना ४३५ प्रदेशी चला गया और दूसरे दिन चतुरंगिनी सेना आदि और परिवार तथा अंत:पुर सहित आ कर गुरुदेव को विधिवत् वन्दन नमस्कार किया और बारबार क्षमा याचना धर्मोपदेश दिया, तलश्चात् प्रदेशी से कहा; -- को । " राजन् ! तुम अरमणीय (अप्रिय, अधार्मिक, दुःखदायी) मिट कर रमणीय (प्रिय धर्मी, जीवों के लिये सुखदायी ) बने हो । अब फिर कभी अरमणीय नहीं बन जाना । क्योंकि जिस प्रकार - १ पत्र पुष्प फल आदि से भरपूर एवं सुशोभित उद्यान रमणीय होता है और बहुत-से पथिक उस उद्यान की शीतल छाया में विश्राम कर सुख का अनुभव करते हैं. परन्तु जब पतझड़ हो कर पत्रपुष्पादि रहित हो जाता है. तब अरमणीय हो जाता है । फिर वहाँ कोई पथिक नहीं टिकता । २ नाट्यशाला में तबतक ही दर्शकों की रुचि रहती है और भीड़ लगा रहती है, जबतक कि वहाँ गान, वादन, नृत्य-नाटक और हास्यादि से मनोरंजन होता रहे । नाटक समाप्त होने पर एक भी दर्शक नहीं ठहरता, क्योंकि वह नाट्यशाला अरणीय हो जाती है । ३ जबतक गन्नों का खेत कटता रहता है, पिलता रहता है, गन्ना, उसका रस और गुड़ पिया-पिलाया और दिया जाता है, तबतक रमणीय होता है, जब सब बन्द हो जाता है तो अरमणीय हो जाता है । ४ धान्य के खलिहान भी रमणीयअमीर होते हैं। इसलिए राजन् ! तुम रमणीय वन गये हो तो भविष्य में अरमर्ण य नहीं हो जाओ, इतनी सावधानी सदैव रखना " - महर्षि ने सावधानी का बोध दिया । प्रदेशी का संकल्प और राज्य के विभाग " भगवन् ! मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अब अरमणीय बनने की भूल कभी नहीं करूँ। इतना ही नहीं, अब मैं खेताम्बिका नगरी सहित अपने राज्य के सात हजार गाँवों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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