Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 458
________________ पिंगल निग्रंथ की परिव्राजक से चर्चा ४४१ Navकककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर उपरोक्त पाँच प्रश्न सुन कर स्कन्दकजी स्तब्ध रह गए। उनसे उत्तर नहीं दिया जा सका । वे स्वयं शंकित हो गए। उनके मन में कोई निश्चित सत्य जमा ह नहीं । उन्हें मौन देख कर पिगल निग्रंथ ने पुनः पूछा, जब तीसरी बार पूछने पर भी उत्तर नहीं मिला, तो सिंगल निग्रंथ लौट गए । स्कन्दक के मन में पिंगल के प्रश्न रम ही रहे थे। उन्होंने नगरी में भ्रमण करते हुए लोगों की बातों से सुना कि श्रमण भगवान् महावीर प्रभु कृतांगला नगरो के छत्रपलाशक चैत्य में विराजमान हैं। उन्होंने सोचा-"मैं भगवान् महावीर के समोप कृतांगला जाऊँ, उन्हें वन्दना नमस्कार कर के इन प्रश्नों का उत्तर पूर्वी ।" वे स्वस्थान आये और त्रिदण्ड, रुद्राक्ष की माला आदि उपकरण ले कर कृतांगला जाने के लिए निकले । उधर भगवान् ने गणधर गौतम स्वामी से कहा-"आज तुम अपने पूर्व के साथी को देखोगे।" -“भगवन् ! मैं किस साथी को देखूगा?" -" स्कन्दक परिव्राजक को देखोगे । वे आ ही रहे हैं, निकट आगए हैं । पिंगल निग्रंथ ने प्रश्न पूछ कर उन्हें यहाँ आने का निमित्त उपस्थित कर दिया है"-भगवान् ने सारी बात बता दी। ___ -"भगवन् ! स्कन्दक, निग्रंथ-दीक्षा ग्रहण करेगा"-गौतम स्वामी ने अपने पूर्व के साथी की हितकामना से पूछा । --"हां, गौतम ! वह दीक्षित होगा"-भगवान् ने कहा । इतने में स्कन्दक आते हुए दिखाई दिये। गौतम स्वामी उठे । अपना पूर्व का साथी, उस समय का समानधर्मो और वेदवेदांग के पारंगत मित्र का आगमन हितकारी हो रहा है। भगवान् की महानता का परिचय दे कर स्कन्दक को पहले से प्रभावित करने के लिये गौतमस्वामी उनका स्वागत करने आगे बढ़े और निकट आने पर बोले ; - “स्कन्दक ! तुम्हारा स्वागत है, सुस्वागत है । हे स्कन्दक ! तुम्हारा स्वागत सुस्वागत और अन्वागत (अनुरूप = अनुकुल आगमन) है ।" स्कन्दकजी का स्वागत करते हुए गाधर महाराज गौतम स्वामी ने आगे कहा-“श्रावस्ती नगरा में पिंगल निग्रंथ ने तुमस लाक, जाव आदि विषयक प्रश्न पूछे थे, जिनका उत्तर तुम नहीं दे सके और यहाँ भगवान् ने उत्तर प्राप्त करने "गौतम ! तुम्हें कैसे मालूम हुआ ? यह बात तो गुप्त ही थी और हम दोनों के सिवाय कोई जानता ही नहीं था"-आश्चर्यपूर्वक स्कन्दकजी ने पूछा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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